केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में हिन्दी परिषद् द्वारा आयोजित प्रेमचंद जयंती कार्यक्रम
केरल
केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में हिन्दी परिषद् द्वारा कथा सम्राट
प्रेमचंद की 145वीं जयंती पर एक दिवसीय साहित्यिक विचार चर्चा का आयोजन किया गया
जिसका विषय “प्रेमचंद का साहित्य : आधुनिक संदर्भ” था। इस साहित्यिक चर्चा का संचालन विभाग की शोधार्थ
श्राव्या वी. द्वारा किया गया। कार्यक्रम का आरंभ कुलगीत से हुआ। स्वागत भाषण
विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. तारु एस.पवार द्वारा दिया गया उन्होने बताया की
आधुनिक हिन्दी साहित्य के सभी विमर्शों का उद्गम प्रेमचंद के साहित्य में हमें
मिलता है और आज के संदर्भों से जोड़ते हुए उन्होने बताया की प्रेमचंद का साहित्य आज
भी प्रासंगिक है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.
मनु ने अपनी कविता का उल्लेख किया और प्रेमचंद की पंक्तियाँ जिसको वे कविता भी
कहते हैं का ज़िक्र किया “वेतन तो पूरनमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त जो जाता है।” आशीर्वचन
विश्वविद्यालय के राजभाषा अधिकारी डॉ.
अनीश कुमार टी. के. द्वारा दिया गया जिसमें उन्होने दो बातों का ज़िक्र किया- 1.
प्रेमचंद ने हिन्दी कथा साहित्य के लिए नई नीव डाली। 2. प्रेमचंद पूर्व साहित्य
काल्पनिक दुनिया का साहित्य था, प्रेमचंद ने उसे वास्तविक दुनिया से जोड़ा।
प्रमुख वक्ता के रूप में फील्ड मार्शल के. एम. करिअप्पा कॉलेज के आचार्य
एवं विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीधर हेगड़े जी ने प्रेमचंद के जीवन से जुड़े कई तथ्यों को
उजागर किया और गणित से उनकी दुश्मनी से सबको अवगत कराया। आगे बताया कि प्रेमचंद के
साहित्य का लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, साथ ही प्रेमचंद के आदर्शोन्मुखी से यथार्थवादी साहित्यकार बनने के सफर को सबके
सामने रखा। आधुनिक संदर्भ में आज के समाज में उपस्थित विसंगतियाँ उनकी उस समय कि
रचनाओं में देखने को मिलती है। इसके बाद चर्चा का दौर चला जिसमें शोधार्थियों एवं
विद्यार्थियों द्वारा प्रश्न पूछे गए। धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सहायक आचार्य एवं
हिन्दी परिषद् के संयोजक डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह द्वारा किया गया। और
शोधार्थियों के प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया कि समस्या का हल कोई साहित्यका
नहीं देता वह बस समस्या को समाज के सामने उजागर कर देता है, साथ ही आदर्श समयानुसार बदला जा
सकता है।
रिपोर्ट- प्रियंका बी. जवंजाल, शोधार्थी
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