दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी द्वारा पर्यावरणीय विमर्श पर मंथन : हिन्दी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग का हरित संवाद

 

         5-6 मार्च 2025 को, हिन्दी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा ‘हिंदी साहित्य में पर्यावरण : हरित संवाद’ विषय पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का उद्देश्य हिंदी साहित्य में पर्यावरणीय चेतना और हरित विमर्श को केंद्र में रखते हुए सार्थक संवाद स्थापित करना था। हरित संवाद की इस दो दिवसीय यात्रा में देशभर के दस से अधिक विश्वविद्यालयों से शोधार्थियों और विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व रहा और 38 से अधिक शोध प्रपत्र प्रस्तुत किए गए। दस से अधिक विषय विशेषज्ञों ने अपने ज्ञान से संगोष्ठी को समृद्ध करते हुए महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक वक्तव्य दिया।

उदघाटन सत्र

          प्रिया कुमारी (शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय) द्वारा संचालित उदघाटन सत्र का शुभारंभ विश्वविद्यालय कुलगीत के साथ हुआ। प्रो. अमृत जी. कुमार (अकादमिक अधिष्ठाता) ने सहयोगी गणों के साथ दीप प्रज्वलन कर संगोष्ठी का उद्घाटन किया। प्रो. (डॉ.) तारु एस. पवार (हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय) ने स्वागत भाषण से सभा में उपस्थित सभी लोगों के साथ-साथ देश के सुदूर क्षेत्रों से आए प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. (डॉ.) मनु (अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय) ने की। प्रो. (डॉ.) मनु ने मुहब्बती नामा का जिक्र करते हुये बताया कि पर्यावरण में बदलाव का आभास सर्वप्रथम चिड़िया को होता है।

          डॉ. अनीश कुमार टी. के. (राजभाषा अधिकारी, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय) ने खलील जिब्रान की काव्य पंक्तियों  के साथ कालिदास, कीट्स, छायावादी कवियों की पर्यावरण दृष्टि पर बात करते हुये आशीर्वचन प्रदान कर कार्यक्रम के सफल आयोजन की कामना की।

          मुख्य बीज भाषण प्रो. के. वनजा (हिंदी आलोचक एवं पूर्व विभागाध्यक्ष, कोचिन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय) ने दिया, जिसमें उन्होंने हिंदी साहित्य में पर्यावरण चेतना के विभिन्न पहलुओं पर विचार प्रस्तुत किए। उन्होनें भारतीय संस्कृति अरण्य संस्कृति बताई साथ ही बाबर और बाहर से आए हुए लोगों द्वारा भारत के भीतर बसे पर्यावरण संवेदनशीलता पर प्रकाश डाला। इलियट के वेस्टलैंड और भारत में उसी समय लिख रहे साहित्यकारों जैसे प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में हरित दर्शन पर चर्चा की। वक्तव्य में उनके द्वारा बताया गया कि गाँधी सबसे बड़े पर्यावरणविद थे। इसके अलावा उन्होनें हरित दर्शन, पारिस्थितिकी बोध, हिन्दी साहित्य में हरित भाषा के प्रयोग पर भी अपनी बात रखी। निष्कर्षत: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारतीय संस्कृति की हरित यात्रा के साथ सभा को समेटते हुये समकालीन स्थिति पर उन्होनें अपनी बात को विराम दिया।

          इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतर्गत हिंदी परिषद के संयोजक डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह द्वारा आयोजित पोस्टर प्रतियोगिता के विजेताओं (प्रथम-ऋतुवर्णा एम. के., कीर्तिराज पी., राहुल यू., द्वितीय- आइशत्तु सदीदा, दृश्या एस., तृतीय-मंजिमा पी., फातिमा के., आर्या एस. एम. और अंजिमा के., अश्वति कृष्णन पी.पी.) को भी सम्मानित किया गया, जिससे विद्यार्थियों में सृजनात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ावा मिला। अंत में डॉ. सुप्रिया पी. ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस उदघाटन सत्र ने साहित्य और पर्यावरण के मध्य गहरे संबंधों को रेखांकित किया और हरित चेतना को प्रोत्साहित किया।



प्रथम अकादमिक सत्र

सत्र के संचालक शोधार्थी धन राज ने सभी अतिथियों को मंच पर विराजमान होने का आग्रह करते हुए सत्र का शुभारंभ किया। इस सत्र की अध्यक्षता विभाग के प्रो. (डॉ.) तारु एस. पवार ने की और मुख्य वक्ता के रूप में हिन्दी आलोचक एवं पूर्व विभागाध्यक्ष कोचिन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, केरल की प्रो. के. वनजा  उपस्थित रहीं। डॉ. सीमा चन्द्रन  ने अपने मधुर वचनों से सबका स्वागत किया। प्रो. के. वनजा  ने अपने वक्तव्य में ‘हिन्दी साहित्य में पर्यावरण: हरित संवाद’ विषय संबंधी एस. आर. हरनोट की ‘नदी रंग जैसी एक लड़की’, इंदिरा दाग़ी की ‘विपश्यना’ और गीतांजलि की ‘रेतसमाधि’ के उदाहरणों से पुष्ट किया। उन्होंने पारिस्थितिक स्त्री विमर्श, भौतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि में फर्क, विस्थापन की समस्या, कोविड 19 और प्रवासी मजदूर वर्ग की पीड़ा, पर्यावरण के ह्रास से आने वाली प्राकृतिक विपदाओं, आदि विषयों पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने वक्तव्य में गांधी जी को विश्व का सबसे बड़ा पर्यावरण हितैषी बताया। उनके वक्तव्य के उपरांत प्रपत्र प्रस्तुतीकरण क्रमशः इस प्रकार किया गया :-

  1. 'बिहारी सतसई के काव्य में प्रकृति चित्रण' / सहायक आचार्य श्रुति मानकीकर, हिन्दी विभाग, श्रीधर्मस्थल मंजुनाथेश्वर महाविद्यालय, कर्नाटक
  2. विद्यापति की रचनाओं में प्रकृति और पर्यावरण चेतना का तात्त्विक अध्ययन’ / हर्ष, शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय
  3. 'हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंधों में पर्यावरणीय चित्रण' / नवीन कुमार साह, शोधार्थी, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
  4. 'हिन्दी साहित्य में प्राकृतिक इतिहास की विवेचना' / अनूप कुमार बाली, शोधार्थी, जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली
  5. जलवायु परिवर्तन की विभीषिका पर आधारित हिंदी फ़िल्मों का विश्लेषणात्मक अध्ययन (वर्ष 2010 के बाद की चयनित हिंदी फ़िल्मों के विशेष संदर्भ में)’ / अनिकेत कुमार गुप्ता, शोधार्थी, जामिया मिलिया इस्लामिया
  6. गाँधी दर्शन और पर्यावरण आंदोलनविश्वजीत / विद्यार्थी, हैदराबाद विश्वविद्यालय

अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए प्रो. (डॉ.) तारु एस. पवार ने सभ्यता, संस्कृति और पर्यावरण को बचाने की बात रखी और अंधे अनुकरण के खतरों को पंडित और बिल्ली की कहानी बताते हुए उजागर किया। इसके बाद प्रपत्र प्रस्तुतकर्ताओं को प्रमाणपत्र वितरित किये गए। तत्पश्चात विभाग की शोधार्थी प्रियंका बी. जवंजाल ने धन्यवाद ज्ञपित किया।




द्वितीय अकादमिक सत्र

इस सत्र के संचालन का कार्य भार शोधार्थी प्रगति ने संभाला। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ प्रो. इब्राहिमकुट्टी  (श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कालिडी, केरल) ने की। प्रो. इब्राहिमकुट्टी अपने अध्यक्षीय भाषण में बताया कि मानव स्वभाव ग्रस्त होता है। मानव सभी प्राणियों को अपने अधीन करना चाहता है जोकि अप्राकृतिक है।

इस सत्र की मुख्य वक्ता डॉ. प्रीति यादव  (सहायक आचार्य व प्रभारी प्रधानाचार्य, राजकीय महाविद्यालय, जाटूसाना, रेवाड़ी, हरियाणा) ने अपने वक्तव्य में संगोष्ठी के विषय को भविष्य के लिए प्रासंगिक बताते हुए  इको-फेमिनिज्म (नारी और पर्यावरण ) पर अपने विचार व्यक्त किये। इस सत्र के  वक्ताओं का स्वागत हमारे विभाग के सहायक अध्यापक डॉ. धर्मेन्द्र प्रताप सिंह  ने किया। इस सत्र में देश के  विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक और शोधार्थियों ने अपने प्रपत्र प्रस्तुत किये। जो निम्न है ;

1.    पर्यावरण और गांधीवादी विचारधारा (गांधीवादी साहित्य में पर्यावरणीय संदेश- कमला चौधरी की रचनाओं के संदर्भ में)/ प्रीति प्रिया मरांडी ( सहायक अध्यापक, महिला महाविद्यालय, साहिबगंज, झारखण्ड)

2.    इको फेमिनिज्म - हिंदी साहित्य में महिला दृष्टि से पर्यावरण’ / आदित्य श्याम देव (शोधार्थी, मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश)

3.    सामुदायिकता और ग्राम स्वराज संबंधी अनुपम मिश्र का चिंतन’ / अजय प्रकाश (शोधार्थी, हैदराबाद विश्वविद्यालय, तेलंगाना)

4.    उत्तरआधुनिक दौर के हिन्दी साहित्य में पर्यावरण’ / कोमल भारती (शोधार्थी, तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय)

5.    'जैव-प्रौद्यालोचना की पंचायत में पर्यावरण' / अमर सिंह ( शोधार्थी, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय)

6.    'कुँड़ुख़/उराँव लोकगीत एवं कविता में पर्यावरण का महत्त्व' / बाबूलाल उराँव ( शोधार्थी, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय)

इसके पश्चात प्रपत्र प्रस्तुतकर्ताओं को प्रमाण पत्र वितरित किये गए। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी आविद खान द्वारा किया गया।




तृतीय अकादमिक सत्र (समानान्तर)

तृतीय अकादमिक सत्र का संचालन विभाग के शोधार्थी इलियास मोहम्मद ने किया और अपने स्वागत वक्तव्य से सभा में उपस्थित सभी लोगों को संबोधित किया। सत्र की मुख्य वक्ता डॉ. दुर्गारत्ना सी. (विवेकानंद कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय, पुत्तूर, कर्नाटक) ने 'मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ' कृति को लेकर उसकी पर्यावरणीय चेतना की प्रासंगिकता को उजागर किया। साथ ही उन्होनें कृति में वर्णित आदिवासी जीवन और उनकी प्राकृतिक तारतम्यता को सामाजिक ढाँचे के लिए सीख बताते हुए विषय को गंभीरता से सबके समक्ष प्रस्तुत किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. (डॉ)  मनु (विभागाध्यक्ष) ने की और कविताओं के माध्यम से वर्तमान पारिस्थितिक स्थिति पर प्रकाश डाला। देश के सुदूर क्षेत्रों और विश्वविद्यालय से आए प्रतिभागियों ने पर्यावरण संबंधी प्रपत्रों द्वारा इस सत्र की गरिमा बढ़ाई जो इस प्रकार हैं:-

1. ‘पारिस्थितिकीय संकट की उपस्थिति दर्ज करते हिंदी उपन्यास’ / प्रियंका प्रियदर्शिनी, शोधार्थी, हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय (तेलंगाना)

2. ‘नासिरा शर्मा कृत ‘कुइयांजान’ में चित्रित जल-संकट की राजनीति’ / कुलसूम, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली

3. ‘पर्यावरणीय समस्याओं के संदर्भ में संजीव के उपन्यासों का विश्लेषणात्मक अध्ययन’ / प्रणीत कुमार इन्द्रगुरु, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली

4. ‘पूंजीवादी विकास और विकिरण का दंश झेलता आदिवासी जीवन’ / सपना पटेल, हिन्दी विभाग, मानविकी संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय, तेलंगाना

5. ‘चयनित कहानियों में पर्यावरणीय क्षरण’ / रोज़ी दण्डसेना, हिन्दी विभाग, मानविकी संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय

6. ‘समकालीन उपन्यासों में पर्यावरणीय चिंतन / धन राज, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय

7. ‘हिन्दी फिल्मों में पर्यावरणीय चेतना’ / अभिषेक, हिन्दी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय

8. ‘समकालीन कविता में पर्यावरण संवेदना’ / रघुनन्दन महापात्र, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय

9. 'जयश्री रॉय के रचनाओं में पर्यावरण संबंधी समस्याएँ' / चिक्कु टी. के. , शोधार्थी, यूनिवर्सिटी कॉलेज, तिरुवनन्तपुरम

अंत में धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी तरुण कुमार द्वारा किया गया। इसी के साथ प्रथम दिवस का समापन हुआ।



 

द्वितीय दिवस

चतुर्थ अकादमिक सत्र

द्वितीय दिवस के चतुर्थ सत्र का संचालन कर रहे बाबूलाल उरांव ने सत्र की अध्यक्षता कर रहे केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) मनु  को मंच पर आमंत्रित कियासत्र के मुख्य वक्ता के रूप में कालीकट विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य, डॉ. षिबी सी  और निर्मला कॉलेज, केरल के हिन्दी स्नातकोत्तर एवं शोध विभाग के अध्यक्ष एवं सहायक आचार्य डॉ जूलिया इमैनुएल को आमंत्रित  किया। हिन्दी विभाग केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ धर्मेन्द्र प्रताप सिंह   के द्वारा स्वागत वक्तव्य दिया गया। डॉ. षिबी सी. ने हिन्दी साहित्य के प्रमुख नाटक, जिसमें पर्यावरण को आधार बनाया गया और उसके दुष्परिणाम को रेखांकित किया साथ हीं, उदाहरण के माध्यम से औद्योगिकीकरण के प्रभाव और बदलाव को रेखांकित भी किया। डॉ. षिबी सी ने नाटकों  के  माध्यम  से प्रकृति पर्यावरण और मनुष्यों के अंतः सम्बन्ध को दिखाने का प्रयास किया। डॉ जूलिया इमैनुएल ने  मलयालम साहित्य के प्रमुख पर्यावरणीय साहित्य की चर्चा के  साथ-साथ प्रमुख  कविताओं में प्रकृति  के  दर्द  को बयाँ किया। इसके पश्चात विभिन्न  विश्वविद्यालयों से  आए  छात्रों  ने अपने प्रपत्र का वाचन क्रमशः इस प्रकार  किया:-

  1. 'आदिवासी कविताओं में पर्यावरण संरक्षण' / सोनम, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
  2. 'आदिवासी कविताओं में पर्यावरणीय चेतना' / शिवानी वर्मा, शोधार्थी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
  3. 'समकालीन साहित्य में 'वर्षा नीति' और मदन कश्यप का किसान संघर्ष' / प्रगति, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय
  4. समकालीन आदिवासी कविताओं में पर्यावरणीय चिंताएँ’ / गौरव, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
  5. समकालीन स्त्री कविता में इको- फेमिनिज्म का स्वरूप तथा पर्यावरण चेतना’ / वर्षा यादव, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
  6. पर्यावरण संरक्षण में आधुनिक मानव का योगदान’ / कल्पना, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय
  7. भोपाल गैस त्रासदी में पर्यावरण : वर्तमान और भविष्य की स्थिति’ / लालबाबू कुमार, हिन्दी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. (डॉ.) मनु ने घर को भी  औद्योगिक मशीनरी  से  जोड़ते  हुए  आने  वाली  पीढ़ी  को  पर्यावरणीय बदलाव के साथ बदलने की बात कही। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी घनश्याम द्वारा किया गया।



पंचम अकादमिक सत्र

पंचम अकादमी सत्र का संचालन हमारे विभाग की शोधार्थी कल्पना द्वारा किया गया। उसके उपरांत हमारे हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. सीमा चंद्रन ने हमारे आज के अतिथियों, अध्यक्ष और सभा में उपस्थित  सभी का स्वागत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजकीय महिला महाविद्यालय केरल की हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. शामली एम.एम. के द्वारा किया गया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता के रूप में सरकारी ब्रेण्णन कॉलेज के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग एवं शोध केंद्र की सहायक आचार्य डॉ. सुप्रिया के. पी. उनका विषय रहा ‘समकालीन हिंदी कविता में प्रकृति और स्त्री’ जिसके अंतर्गत उन्होंने स्त्रीवाद में स्त्री मुक्ति का मतलब बताया– ‘जहां स्त्री अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति कर सके।’ साथ ही ecofeminism के सैद्धांतिक पक्षों पर बात की और कात्यायनी, सविता सिंह, अनीता वर्मा की कविताओं और विभिन्न कविताओं के माध्यम से अपने विचारों को प्रकट किया।

दूसरी मुख्य वक्ता के रूप में सरकारी आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, केरल के हिंदी स्नातकोत्तर एवं अनुसंधान विभाग की सहायक आचार्य डॉ. ए. पी. सलीजा ने ‘हिंदी कविताओं की हरीतिमा में जल, जंगल, जमीन’ विषय के अंतर्गत पूर्व से वर्तमान तक प्रकृति के चित्रण में आए परिवर्तन को मंगलेश डबराल की ‘संभव’ कविता और श्याम कश्यप की ‘हम ही है प्रकृति’ कविता के माध्यम से अभिव्यक्त किया। कार्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालय से शोधार्थियों ने अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए-:

1. 'हिंदी कविता में अभिव्यक्त पर्यावरणीय संकट (जल के विशेष संदर्भ में)' / अवंतिका यादव, शोधार्थी, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

2. ‘ग़ज़लों में अभिव्यक्त पर्यावरणीय चेतना’ / आदित्य, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय

3. ‘लोक साहित्य और पर्यावरण संरक्षण: लोकगीतों और लोक कथाओ में अभिव्यक्त प्रकृति’ / करुणा सैनी, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय

अंत में कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन विभाग की शोधार्थी प्रिया कुमारी द्वारा किया गया।

 


षष्ट अकादमिक सत्र

षष्ट अकादमी सत्र का संचालन शोधार्थी इलियास मोहम्मद द्वारा किया गया। सहायक आचार्य डॉ रामबिनोद रे ने अतिथियों एवं वक्ताओं का स्वागत किया। इस सत्र की प्रथम मुख्य वक्ता के तौर पर सहायक आचार्य डॉ प्रिया ए  (कैथोलिकेट कॉलेज, हिंदी विभाग) ने अपना वक्तव्य दिया। जिसमें आपने आदिकालीन समय से लेकर वर्तमान समय के साहित्य में प्रकृति के परिवर्तित रूप को दर्शाया तथा समकालीन कविताओं के माध्यम से पर्यावरण चेतना के प्रति अपना दृष्टिकोण रखा।

दितीय वक्तव्य लेफ्टिनेंट डॉ. शबाना हबीब (राजकीय महिला महाविद्यालय, हिंदी विभाग) द्वारा दिया गया। जिसमें आपने श्लोक के द्वारा वर्तमान में विकास के नाम पर पेड़ो की कटाई की ओर ध्यान खींचा। नासिरा शर्मा के कुइयां जान को केंद्र में रखकर आपने अपना वक्तव्य दिया जिसमें जल की समस्या मुख्य रूप से देखने को मिलती है। इसके बाद प्रपत्र प्रस्तुति क्रमश इस प्रकार हुई:-

1. 'मलयालम कहानी ‘नीरालियन’ का पारिस्थितिक अध्ययन' / श्रीराज के एस, सहायक प्राचार्य, राजगिरी कॉलेज ऑफ़ मैनेजमेंट एंड एप्लाइड साइंसेज, काक्कनाड, एर्नाकुलम, केरल

2. ‘हिन्दी और मलयालम साहित्य में पर्यावरणीय चिंतन (विशेष संदर्भ: ’मरांग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ औरएनमकजे’ का तुलनात्मक अध्ययन)’ / लक्ष्मी के. एस., शोधार्थी, हिंदी विभाग, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय कालडी, केरल

3. ‘हिंदी फिल्म ’इरादा’ और पर्यावरण ह्रास के प्रति प्रतिरोध’ / अंकित पाल, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली

इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो (डॉ.) तारू एस पवार  ने अपने अध्यक्षीय भाषण में समकालीन शिक्षक प्रणाली तथा प्रपत्र प्रस्तुतकर्ता के मनोभावों को सभी के समक्ष रखा। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी प्रदुन कुमार द्वारा किया गया।


सप्तम अकादमिक सत्र (समानान्तर)

इस सत्र (समानांतर) का संचालन एवं स्वागत केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग की शोधार्थी प्रियंका बी. जवंजाल द्वारा किया गया किया। सत्र की अध्यक्षता राजकीय महाविद्यालय (हरियाणा) की सहायक आचार्य व प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. प्रीति यादव द्वारा की गई। अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. प्रीति यादव  ने बताया कि हमें ज्ञान को केवल काग़जों तक ही सीमित नहीं रखना है बल्कि उसकी व्यावहारिकता भी ज़रूरी है। उन्होंने बताया कि हमें प्रकृति की गोद में बैठकर नवाचार, विचार पर चिंतन करना चाहिए। साथ ही उन्होनें पर्यावरण से संबंधित शोध क्षेत्र भी साझा किए। इसके पश्चात निम्न शोधार्थी और विद्यार्थियों ने शोध प्रपत्र प्रस्तुत किए: -

1. ‘लेपचा समुदाय में पर्यावरण, कृषि और पारंपरिक ज्ञान का अन्वेषण’ / समीर सुब्बा, शोधार्थी, अंतर्राष्ट्रीय संबंध एवं राजनीति विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय

2. ‘साँची स्तूप के तोरण द्वारों पर प्रकृति चित्रण: एक अध्ययन’ / अविनाश बर्मन, शोधार्थी, बौद्ध दर्शन विभाग, साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश

3. ‘इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविताओं में पर्यावरणीय चिंतन’ / विरेश, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय

4. 'पारिस्थितिक विमर्श और हिन्दी कविता' / सुरेन्द्र, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय

5. 'आज की हिन्दी कविता में पर्यावरण' / प्रत्युषा प्रमोद, हिन्दी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय



समापन सत्र

समापन सत्र का संचालन शोधार्थी तरुण कुमार द्वारा किया गया। इस सत्र का स्वागत भाषण प्रो (डॉ.) मनु द्वारा किया गया। इसके पश्चात प्रो. (डॉ.) मनु द्वारा निर्देशित फिल्म को प्रदर्शित किया गया जिसमें आपने केरल राज्य के कासरकोड जिले में एनमगजे और अन्य गाँवों में एन्डोसल्फान के कुप्रभाव को दिखाया है। मनुष्य और जीव जन्तु इससे प्रभावित हुए है, नवजात शिशु ही नहीं बल्कि पशु भी विकलांग पैदा होने लगे। इसमें प्रजातंत्र में आम लोगों की स्थिति व व्यावसायिक लोगों का सरकार व प्रसाशन पर नियंत्रण चित्रित किया गया है। इस चलचित्र के गीत प्रो. (डॉ.) मनु के स्वरचित है जिसे इस लिंक के माध्यम से देखा भी जा सकता है - https://www.youtube.com/watch?v=DnlgkUGF6T0 । समापन सत्र में विशिष्ट समागत के रूप में भाषा और तुलनात्मक साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. जोसेफ कोइपल्ली ने अपने मूल्यवान शब्दों से हमारा उत्साहवर्धन किया । उन्होनें एनमगजे उपन्यास तथा साथ ही हमारे विश्वविद्यालय की स्थापना के बारे में बताया। इसके साथ ही हमें अपने दायित्व निर्वहन के प्रति जिम्मेदार होने की प्रेरणा दी। इसके बाद शिवानी वर्मा (शोधार्थी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय), हर्ष (शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय) और अभिषेक ने अपने सम्पूर्ण संगोष्ठी संबंधी अनुभव सबसे सांझा किए। इसके पश्चात प्रपत्र प्रस्तुतकर्ताओं को प्रमाण-पत्र वितरण किया गया। अंत में संगोष्ठी संयोजक डॉ. सुप्रिया पी. ने धन्यवाद ज्ञपित कर सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।




संगोष्ठी के समापन पश्चात सामूहिक तस्वीर 

समाचार पत्र में संगोष्ठी की चर्चा 


प्रो. के. वनजा, हिन्दी आलोचक एवं पूर्व विभागाध्यक्ष, कोचिन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, केरल



प्रो. इब्राहिमकुट्टी, हिन्दी विभाग, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कालडी, केरल


डॉ. प्रीति यादव, सहायक आचार्य व प्रभारी प्रधानाचार्य, राजकीय महाविद्यालय, जाटूसाना, रेवाड़ी, हरियाणा


डॉ. दुर्गारत्ना सी., विवेकानंद कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय, पुत्तूर, कर्नाटक


डॉ. षिबी सी., सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, कालीकट विश्वविद्यालय


डॉ. जूलिया इमैनुएल, अध्यक्ष एवं सहायक आचार्य, हिन्दी स्नातकोत्तर एवं शोध विभाग, निर्मला कॉलेज, मूवाट्टुपुड़ा, केरल



प्रो. शामली एम. एम., अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, राजकीय महिला महाविद्यालय, तिरुवनंतपुरम, केरल



डॉ. सुप्रिया के पी., सहायक आचार्य, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग एवं शोध केंद्र, सरकारी ब्रेण्णन कॉलेज, तल्लश्शेरी, केरल



डॉ. ए.पी. सलीजा, सहायक आचार्य, हिन्दी स्नातकोत्तर एवं अनुसंधान विभाग, सरकारी आर्ट्स एंड साइन्स कॉलेज, केरल



डॉ. प्रिया ए., सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, केथोलिकेट कॉलेज, पतनमतिट्टा, केरल



लेफ़्टिनेंट डॉ. शबाना हबीब, सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, राजकीय महिला महाविद्यालय, तिरुवनन्तपुरम, केरल



डॉ. प्रीति यादव, सहायक आचार्य व प्रभारी प्रधानाचार्य, राजकीय महाविद्यालय, जाटूसाना, रेवाड़ी, हरियाणा




संगोष्ठी सभा


सम्पूर्ण कार्यक्रम विवरण 






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उदघाटन सत्र की रिपोर्ट : तरुण कुमार, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

प्रथम सत्र : प्रियंका बी. जवंजाल, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

द्वितीय सत्र : आविद खान, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

तृतीय सत्र : तरुण कुमार, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

चतुर्थ सत्र : घनश्याम कुमार, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

पंचम सत्र : प्रिया कुमारी, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

षष्ट सत्र : प्रदुन कुमार, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

सप्तम सत्र : प्रगति, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

 समापन सत्र : धनराज, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

प्रतिवेदन प्रस्तुतीकरण एवं एकत्रीकरण : आदित्य

रिपोर्ट समीक्षा : तरुण कुमार

तस्वीरें : आदित्य संग विश्वविद्यालयी छायाचित्रकार

तस्वीरों का संयोजन : तरुण कुमार

 



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