'भारतीय ज्ञान परंपरा और वैश्विक हिन्दी' विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

दिनांक 09 और 10 जनवरी 2025, हिन्दी विभाग केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय में विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में “भारतीय ज्ञान परंपरा और वैश्विक हिन्दी” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का उद्घाटन दीप प्रज्वलन से हुआ। उद्घाटन सत्र का संचालन शोधार्थी प्रियंका जवंजाल ने किया तथा स्वागत प्रो. (डॉ) तारु एस पवार जी ने किया। उन्होंने इस विषय का महत्व बताते हुए ये बताया कि दक्षिण भारत में इस विषय पर ये पहली संगोष्ठी है। उन्होनें हिन्दी के बारे में एक महत्वपूर्ण जानकारी सांझा करते हुए बताया कि हिन्दी अब विश्व की तीसरी प्रचलित भाषा नहीं, अपितु यह अब प्रथम स्थान पर है, इसे बोलने वालों का आकड़ा १५९ करोड़ तक पहुँच चुका है। परंतु ऑनलाइन यह आकड़ा अब भी पुराना ही दर्शाता है। तत्पश्चात उन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर विद्यमान केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति डॉ विंसेंट मेथ्यु जी को भाषाण हेतु आमंत्रित किया। उन्होंने ये बताया कि Language is the medium of communication. Hindi seems to connect people. (सम्प्रेषण का आधार भाषा है। हिन्दी लोगों को लोगों से जोड़ने का कार्य करती है।) ये कहते हुए उन्होंने इस कार्यक्रम को सफ़ल होने की अग्रिम शुभकामनाएँ दीं।

अतिथि भाषण देते हुए केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.(डॉ) मनु जी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को वैश्विक हिन्दी में जोड़ने की सार्थकता तथा कारण पर बल दिया। उन्होंने हिन्दी के विकास के बारे में बताया कि जिस भाषा को अधिकार मिल जाता है वह विकास तथा वतन की सरहद को पार कर जाती है। आशीर्वचन हेतु केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के राजभाषा अधिकारी डॉ अनीश कुमार टी के जी ने विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए बताया कि जय अनुसंधान के तहत वैदिक काल से ज्ञान परंपरा का मुख्य विकास हुआ।

बीज भाषाण हेतु अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्यकार, कुअन्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन से डॉ विवेक मणि त्रिपाठी जी ने ऑनलाइन जुड़कर इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के सबसे बड़े व्यक्ति शंकराचार्य केरला के ही थे। उन्होंने बताया की चीन में भारतीय ज्ञान परंपरा का बहुत गहरा प्रभाव है। चीनी भाषा में संस्कृत भाषा से काफ़ी कुछ लिया है। उन्होंने बताया कि चीन भारत को स्वर्ग की संज्ञा देता है। साथ ही उन्होंने नैतिक शिक्षा, नाट्य एवं पद्य शैली, तथा वसुधैव कुटुम्बकम की विशेषता के बारे में जानकारी दी।

उद्घाटन सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ धर्मेन्द्र प्रताप सिंह जी, (केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग) ने किया।

उद्घाटन सत्र के पश्चात प्रथम अकादमिक सत्र “वैश्विक हिन्दी में कलात्मक संस्कृति और भारत बोध” की शुरुआत हुई। इस सत्र का संचालन और स्वागत केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी क्रमशः आदित्य, शेफाली राय ने किया।

इस सत्र की अध्यक्षता फील्ड मार्शल के.एम. करिअप्पा कॉलेज, कर्नाटक के प्रो. (डॉ) श्रीधर हेगड़े जी ने किया। इस सत्र की मुख्य वक्ता रहीं कन्नूर विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रीति के.। उन्होंने कहा हिन्दी न केवल एक भाषा है बल्कि सांस्कृतिक सामाजिक धरोहर है। साथ ही उन्होंने भारतेन्दु जी द्वारा लिखी एक पंक्ति का जिक्र करते हुए “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल” की बात कही।

इसके बाद शोधार्थीयों/ विधयार्थियों ने अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। सर्वप्रथम प्रदुन कुमार, (केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय) विषय- ‘अर्थ की दृष्टि से भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन’, लाल बाबू, (केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, एम.ए) विषय- वैश्विक हिन्दी की हानि एवं उसका प्रभाव पर अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए।

इसके पश्चात अध्यक्षीय भाषण देते हुए प्रो.(डॉ) श्रीधर हेगड़े जी ने प्रस्तुत किए हुए शोध प्रपत्रों का आलोचनात्मक अध्ययन तथा उसके भीतर संभावित कार्यों पर भी प्रकाश डाला। आपने संस्कृति में निहित ज्ञान परंपरा के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने शिव के नटराज रूप को तथा अर्धनारीश्वर का जिक्र करते हुए बताया कि यह प्रमुख एवं सुंदर कलात्मकता का प्रतीक है।

इसके पश्चात प्रो. (डॉ) मनु ने अध्यक्षता कर रहे प्रो.(डॉ) श्रीधर हेगड़े जी को तथा मुख्य वक्ता डॉ. प्रीति के. को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

अंत में इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन बाबूलाल उरांव (शोधार्थी, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय) ने किया।


दिनांक 10 जनवरी 2025

द्वितीय अकादमिक सत्र “भारतीय ज्ञान परंपरा की शोध दृष्टि और हिन्दी संसार” का संचालन और स्वागत केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी क्रमशः इलियास मोहम्मद, योयी जामोह ने किया।

इस सत्र की अध्यक्षता हिन्दी विभाग, मंगलुरु विश्वविद्यालय, कर्नाटक के प्रो. (डॉ) सुमा रोडनवर जी ने किया।

इस सत्र में प्रपत्र प्रस्तुतीकरण रामकृष्ण, शोधार्थी, सुल्या डिग्री कॉलेज/ शरद कुमार झरिया, शोधार्थी, संस्कृत विश्वविद्यालय/ तरुण कुमार, शोधार्थी, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय/ नितिन कुमार के.वी, एम.ए, मंगलुरु विश्वविद्यालय ने किया।

इस सत्र का अध्ययक्षीय भाषाण करते हुए प्रो. (डॉ) सुमा रोडनवर जी ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का प्रचार प्रसार काफ़ी हुआ है। प्रो.(डॉ) मनु जी ने स्मृति चिन्ह देते हुए प्रो. (डॉ) सुमा रोडनवर जी को सम्मानित किया। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी आविद खान ने किया।

 तृतीय अकादमिक सत्र “प्राचीन अनुशषणात्मक संरचना और जनसंचार (जैविक, आयुर्विज्ञान, खगोल विज्ञान, योग, विद्यापीठ आदि)” संचालन और स्वागत केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी क्रमशः कल्पना, प्रगति ने किया। इस सत्र की अध्यक्षता कर्नाटक विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग, के डॉ ज़ाकिर हुसैन गूलगुंदी जी ने किया।

साथ ही इस सत्र की मुख्य वक्ता प्रो. (डॉ) सुमा रोडनवर जी रहीं। उन्होंने बताया कि कर्नाटक के बसेश्वर की तुलना कबीर से की जाती है। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर का स्थान काफ़ी बड़ा है। आपने आयुर्वेद का भी ज़िक्र किया। आपने भारतीय ज्ञान पद्धति पर एक विस्तारपूर्वक विवरण दे कर उसकी महत्त्वता पर भी ज़ोर दिया। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित गवर्मेंट कॉलेज, पय्यनूर, हिन्दी विभाग के डॉ. विष्णु तंकप्पन जी ने बताया कि अल्बरूनी का ज़िक्र किया। साथ ही भारतीय तथा पश्चिम में ज्ञान के महत्त्व को लेकर विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डाला। पश्चिम में Knowledge is power की उक्ति चलती है तो भारत में गीता का ज़िक्र करते हुए कहा Knowledge is a great purifier.

प्रपत्र प्रस्तुतीकरण शेफाली राय, घनश्याम कुमार, जयकला, मनोज कुमार, सविता, आदित्य, इलियास, योयी जमोह ने किया। प्रो. डॉ तारु एस पवार सर जी ने डॉ ज़ाकिर हुसैन गूलगुंदी जी, प्रो. (डॉ) सुमा रोडनवर जी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन प्रदुन ने किया।

चतुर्थ अकादमिक सत्र “परंपरागत शास्त्रीय पद्धति में नवदर्शन का वैश्विक हिन्दी लोक (वेद, शास्त्र, दर्शन, नीति, आदि)” संचालन और स्वागत केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी क्रमशः मनोज, घनश्याम ने किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो डॉ मनु सर कर रहे थे, एवं मुख्य वक्ता के रूप में प्रो डॉ प्रभाकरण हेब्बार इल्लत जी उपस्थित थे। प्रो. डॉ तारु एस पवार सर ने प्रो डॉ प्रभाकरण हेब्बार इल्लत जी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित कर इस सत्र की शुरुआत की। इसके पश्चात शोधार्थीयों ने क्रमशः प्रगति, किशोर कुमार, प्रिय कुमारी, यशस्विनी के भट्ट, आविद खान, धन्या नगेर, बाबूलाल उरांव, लावण्या, अखिलेश तथा कल्पना ने अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो डॉ प्रभाकरण हेब्बार इल्लत जी ने बताया कि मनुष्य का अस्तित्व भाषा का महत्व है। शब्द मनुष्य की जीवन का अनुभव या व्यक्तिगत अनुभूति होती है। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो डॉ मनु सर ने भाषा पर अपनी बात रखी। सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुप्रिया पी मैम ने किया।

समापन सत्र का संचालन तरुण कुमार ने किया तथा स्वागत डॉ धर्मेन्द्र प्रताप सिंह सर जी ने किया।इस सत्र के विशिष्ठ समागत केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ मुरलीधरन नाम्बियार सर उपस्थित रहे। आपने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा पर रखे इस दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफ़ल आयोजन करने के लिए केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग को शुभकामनाएं। साथ ही आपने बताया कि We are the pionner of yoga, which is also a part of Indian knowledge system. मुख्य वक्ता के रूप में डॉ ज़ाकिर हुसैन गूलगुंदी जी उपस्थित रहें। उन्होंने कहा कि वैश्विक हिन्दी की परिकल्पना का आधार प्रवासी भारतीयों द्वारा ही तय किया गया है। समापन सत्र का धन्यवाद ज्ञापन डॉ राम बिनोद रे सर ने किया।

 






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