‘सांस्कृतिक पर्यटन : चुनौतियाँ और संभावनाएँ’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन
दिनांक
27 जनवरी 2025 को
केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित एक अद्वितीय और ज्ञानवर्धक
कार्यक्रम ने न केवल सांस्कृतिक पर्यटन के महत्व को उजागर किया,
बल्कि
इसके जटिल पहलुओं पर विचार-विमर्श
का मंच भी प्रदान किया। इस आयोजन की संयोजक डॉ.
सुप्रिया
जी के निर्देशन में यह व्याख्यान ‘सांस्कृतिक
पर्यटन की समस्याएँ एवं संभावनाएँ’ विषय
पर केंद्रित था। इस कार्यक्रम में भारतीय सांस्कृतिक धरोहर,
पर्यटन
और उसकी चुनौतियों पर गहन चर्चा की गई।
कार्यक्रम
का संचालन और स्वागत संबोधन शोधार्थी तरुण कुमार ने अत्यंत सजीव और प्रभावशाली शैली
में प्रस्तुत किया। श्री जगदीश राम ‘पौरी’,
जो
शिक्षा मंत्रालय में राजभाषा निदेशक के रूप में कार्यरत हैं,
ने
अपने सारगर्भित उद्बोधन में भारतीय ज्ञानपरंपरा और संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डाला।
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत का सांस्कृतिक पर्यटन केवल स्थल-दर्शन
तक सीमित नहीं है, बल्कि
यह हमारी सभ्यता, परंपराओं
और मूल्य-प्रणाली
का जीवन्त दस्तावेज़ है।
कार्यक्रम
में हिन्दी विभाग के छात्र अभिषेक ने मुख्य वक्ता डॉ.
सुनिल
तिवारी का परिचय देकर उन्हें मंच पर आमंत्रित किया। डॉ.
तिवारी,
जो
पर्यटन अध्ययन विभाग के प्रतिष्ठित विद्वान हैं,
ने
सांस्कृतिक पर्यटन के विभिन्न पहलुओं पर एक रोचक और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति दी। उनकी
प्रस्तुति में निम्नलिखित बिंदुओं को प्रमुखता से उठाया गया। उन्होंने समझाया कि सांस्कृतिक
पर्यटन में केवल ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण ही शामिल नहीं है,
बल्कि
इसमें स्थानीय भोजन, परंपराएँ,
लोककला
और जीवनशैली की झलक भी सम्मिलित है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि कैसे एक सुव्यवस्थित
पर्यटन योजना न केवल आर्थिक विकास में सहायक होती है,
बल्कि
स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा करती है। डॉ.
तिवारी
ने अतिक्रमण, सांस्कृतिक
असंवेदनशीलता और असंतुलित विकास को सांस्कृतिक पर्यटन के सामने प्रमुख चुनौतियों के
रूप में रेखांकित किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि सांस्कृतिक स्थलों का संरक्षण केवल
सरकार का उत्तरदायित्व नहीं है, बल्कि
इसमें हर नागरिक की सहभागिता आवश्यक है। डॉ. तिवारी
की प्रस्तुति न केवल ज्ञानवर्धक थी, बल्कि
उन्होंने इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया,
जिससे
शोधार्थियों और विद्यार्थियों को नई दृष्टि मिली।
डॉ.
तिवारी
के व्याख्यान के बाद वहाँ उपस्थित शोधार्थियों,
विद्यार्थियों
और शिक्षकों ने विषय पर गहन चर्चा और परिचर्चा की। इस चर्चा में यह बात उभर कर आई कि
सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए न केवल संरचनात्मक विकास आवश्यक है,
बल्कि
मानसिकता में बदलाव भी उतना ही जरूरी है। चर्चा में भाग लेते हुए कई शोधार्थियों ने
अपने अनुभव साझा किए, जिनमें
यह प्रमुखता से सामने आया कि किस प्रकार सांस्कृतिक पर्यटन में पारंपरिक और आधुनिक
दृष्टिकोण का समन्वय करना आवश्यक है। इस परिचर्चा के दौरान छात्रों ने अपने व्यावहारिक
अनुभव और जिज्ञासा को व्यक्त किया। उन्होंने सवाल उठाए कि कैसे तकनीक का उपयोग पर्यटन
क्षेत्र में किया जा सकता है और सांस्कृतिक धरोहर को डिजिटल रूप में संरक्षित किया
जा सकता है।
कार्यक्रम
के अंत में हिन्दी विभाग के छात्र लाल बाबू ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। उन्होंने संयोजक
डॉ. सुप्रिया,
मुख्य
वक्ता डॉ. सुनिल
तिवारी, श्री जगदीश राम
‘पौरी’ और
सभी उपस्थितजनों को इस सफल आयोजन का हिस्सा बनने के लिए धन्यवाद दिया।
केरल
केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम सांस्कृतिक पर्यटन
की जटिलताओं और संभावनाओं को समझने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था। इसने न केवल विद्यार्थियों
और शोधार्थियों को विषय की गहराई में जाने का अवसर दिया,
बल्कि
सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति जिम्मेदारी का भाव भी विकसित किया।
रिपोर्ट लेखन- तरुण कुमार, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
व्याख्यान के दौरान छात्रों से वार्तालाप करते मुख्य वक्ता डॉ. सुनिल तिवारी |
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