'विरासत के आईने में प्रेमचंद' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

 

08 अगस्त 2024, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय में कथा सम्राट प्रेमचंद जयंती पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका विषय “विरासत के आईने में प्रेमचंद” रखा गया।

उद्घाटन सत्र :

          इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का संचालन शोधार्थी तरुण कुमार द्वारा किया गया जिसकी शुरुआत विश्वविद्यालय गीत से हुई।

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए, प्रो॰ (डॉ) तारु एस. पवार द्वारा कुलसचिव डॉ॰ मुरलीधरन नाम्बियार, मुख्य अतिथि प्रो॰ श्रीधर हेगड़े (फील्ड मार्शल के॰ एम॰ करिअप्पा कॉलेज, कर्नाटक) एवं डॉ॰ श्रीकांत एन॰ एम॰ (सहायक आचार्य, पय्य्नुर कॉलेज, केरल), डॉ॰ अनीश कुमार टी॰ के॰ (राजभाषा अधिकारी, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय), विभागाध्यक्ष प्रो॰ (डॉ॰) मनु, कार्यक्रम संचालनकर्ता डॉ॰ राम बिनोद रे एवं डॉ॰ धर्मेंद्रप्रताप सिंह के साथ-साथ अन्य अध्पयाकों तथा वहाँ उपस्थित शोधार्थी एवं विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए बताया कि इस विश्वविद्यालय में प्रेमचंद जयंती वर्ष 2016 से मनाया जा रहा है। साथ ही उन्होने प्रेमचंद के बारे में कहा कि “हिन्दी साहित्य के विमर्शों का महाद्वार प्रेमचंद हैं”।

इसके पश्चात् कुलसचिव एवं अन्य गणमाण्यों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन किया गया। डॉ॰ मुरलीधरन ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद का रचनासंसार साधारण से साधारण जन की कहानी है। डॉ॰ मुरलीधरन जी ने मुख्यातिथि डॉ॰ श्रीधर हेगड़े जी को मोमेंटों देकर उनका स्वागत किया। इसके पश्चात् विभाग की सहायक आचार्य डॉ. सुप्रिया पी. के संपादकत्व में स्नातकोत्तर छात्रों द्वारा हस्तलिखित पत्रिका मानस रंग का विमोचन किया गया।

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए विभागाध्यक्ष प्रो॰ (डॉ॰) मनु ने अपने अध्यक्ष भाषण में बताया कि हम प्रेमचंद को मील का पत्थर मानकर ही साहित्य का विभाजन करते हैं और उस विभाजन को प्रेमचंदपूर्व युग, प्रेमचंदयुग एवं प्रेमचंदोत्तर युग के नाम से जानते हैं। उन्होने प्रेमचंद की कहानी नमक का दरोग़ा का उद्धरण देते हुए कहा कि “मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है।”

अध्यक्ष भाषण के उपरांत डॉ॰ अनीश कुमार टी के ने अपने भाषण में कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में जो प्रासंगिकता है वह देश की कमजोरी दर्शाती है, देश की कमियाँ दूर होनी चाहिए, वह प्रासंगिकता कम होनी चाहिए जो प्रेमचंद ने अपने साहित्य के आईने में दिखाने का प्रयास किया है । डॉ॰ श्रीकांत एन एम ने भी वहाँ उपस्थित सभी लोगों के प्रति आभार प्रकट किया।

मुख्य अतिथि प्रो॰ श्रीधर हेगड़े ने अपने वक्तव्य में कहा कि खंडित दर्पण में खंडित मुख ही नज़र आता हैं उन्होंने अपनी बात को ज़ारी रखते हुए यह भी कहा कि विरासत के आईने में स्वयं को देखते हुए आगे की ओर बढ़ना चाहिए। साथ ही साथ उन्होने प्रेमचंद लेखक संघ के बारें में भी अपने विचारों को प्रकट किया। उद्घाटन सत्र का धन्यवादज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक डॉ॰ धर्मेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा किया गया।

प्रथम सत्र : सामाजिक सरोकार और प्रेमचंद

इस सत्र का संचालन शोधार्थी प्रिया कुमारी द्वारा किया गया। डॉ॰ श्रीकांत जी ने अपने विषय प्रेमचंद : जीवन संघर्ष का विरासत पर अपना वाचन प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रेमचंद साहित्य को जीवन की आलोचना मानते हैं। साथ ही उन्होने बड़ी ही ख़ूबसूरती से केरल की वर्तमान स्थिति और प्रेमचंद के साहित्य में सामंजस्य स्थापित किया।

इसके बाद सभी शोधार्थी एवं विद्यार्थियों द्वारा प्रपत्र प्रस्तुत करने का कार्यक्रम आरंभ हुआ, जिसकी शुरुआत शोधार्थी तरुण कुमार ने प्रेमचंद की कहानियों मे आत्महत्या के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं का अध्ययन विषय से की। उन्होने बताया की प्रेमचंद ने मानवीय संवेदना के हरेक पहलुओं को छुआ है, परंतु उनके साहित्य में मानव समस्या ही नहीं मानव विघटन अर्थात् आत्महत्या की प्रवृति भी स्पष्ट चित्रित है।

शोधार्थी शर्ली थॉमस ने प्रेमचंद और रूपसिंह चंदेल के उपन्यासों में नारी चेतना विषय के बारें में बताते हुए कहा कि प्रेमचंद सदाबहार साहित्यकार हैं।

शोधार्थी शेफाली राय ने औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति कि चेतना और प्रेमचंद विषय में बताया कि प्रेमचंद अपने साहित्य में तथाकथित डेमोक्रेसी कि तरफ संकेत करतीहैं।

शोधार्थी मनोज बिस्वास ने प्रेमचंद के सेवासदन और शरतचंद के श्रीकांत में वैश्यावृति की समस्या पर बात करते हुए कहा कि प्रेमचंद वैश्यावृति के समाधान में सामाजिक संस्था को विकल्प के रूप में देखते हैं,शरतचंद समाज को एक आदर्श देते हैं।

शोधार्थी बाबू लाल उरांव प्रेमचंद की विध्वंस कहानी में वृद्धा आदिवासी की विवशता में बताते हैं कि किस प्रकार आदिवासियों पर जमींदारों द्वारा शोषण किया जाता हैं।

इस सत्र का अध्यक्ष भाषण डॉ श्रीधर हेगड़े द्वारा एवं धन्यवादज्ञापन शोधार्थी प्रियंका द्वारा किया गया।

द्वितीय सत्र : भविष्य दृष्टा प्रेमचंद और उनका साहित्य

इस सत्र का संचालन शोधार्थी योयी जामो द्वारा किया गया। इस सत्र में प्रथम प्रस्तुति शोधार्थी रोहित जैन ने अपने विषय कथा भाषा और प्रेमचंद का उपन्यास साहित्य से किया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का दौर समाजसुधारक का दौर था। शोधार्थी कल्पना ने 2024 के आईने में प्रेमचंद विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि 1936 में लिखे साहित्य का और भी विकृत रूप 2024 के समाज में देखने को मिलता है। शोधार्थी इलियास मो॰ ने प्रेमचंद के साहित्य में लोकतत्व विषय पर कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में आदर्श और यथार्थ के बीच का संयोजन ही लोकतत्व है। शोधार्थी घनश्याम ने अपने विषय प्रेमचंद साम्पादक कि नज़र में' बात रखते हुए कहा कि प्रेमचंद कि महत्ता संपादकों के बीच ही नहीं जनमानस कि भी बीच कि आवाज़ है। शोधार्थी प्रदुन कुमार ने अलग विषय प्रेमचंद का आर्थिक चिंतन पर कहा कि व्यक्ति अपने धन के लोभ में सभी भावनाओं को दरकिनार कर देता है। शोधार्थी आविद खान ने हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक प्रेमचंद पर कहा कि हमने एक साथ लड़कर जो आज़ादी हासिल की है, उसके बाद भी हम पूर्ण रूप से आज़ाद नहीं हैं। हम धार्मिक बंधनों में आज भी जकड़े हुए हैं। शोधार्थी प्रिया कुमारी ने प्रेमचंद की कहानियों में पशु संवेदना की बात करते हुए बताया कि प्रेमचंद अपने साहित्य में मानव एवं पशुओं के बीच की संवेदना का मार्मिक रूप से चित्रण करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

इस सत्र का अध्यक्ष भाषण डॉ श्रीकांत एम एन जी द्वारा एवं धन्यवादज्ञापन शोधार्थी बाबूलाल उरांव द्वारा किया गया।

तृतीय सत्र : वर्तमान साहित्यिक संदर्भ और प्रेमचंद का दर्शन

इस सत्र का संचालन शोधार्थी इलियास मोहम्मद द्वारा किया गया। इस सत्र में प्रथम प्रपत्र की प्रस्तुति शोधार्थी धनराज द्वारा प्रेमचंद के साहित्य में किसानद्वारा किया, जिसमें उन्होने बताया कि किसानों को उच्च वर्ग ही नहीं किसान स्वयं भी स्वयं के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं। शोधार्थी योयी जामो, विषय प्रेमचंद के साहित्य में लोकपक्ष पर कहती हैं कि प्रेमचंद का साहित्य लोकजीवन का आईना है। साथ ही वह प्रेमचंद के साहित्य में लोकगीत, लोकभाषा एवं संस्कृति के चित्रण को भी दर्शाती हैं। स्नातकोत्तर के विद्यार्थी अभिषेक अपना प्रपत्र प्रेमचंद कि कहानियों में मानवतावाद प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि प्रेमचन्द की कहानियों में बालमनोविज्ञान एवं मानवीय संवेदना का रूप देखने को मिलता है।  स्नातकोत्तर के विद्यार्थी लाल बाबू भी अपना प्रपत्र प्रेमचंद के काव्य में समाजवाद को पढ़ते हुए नयी दिशा एवं अन्य कविताओं में समाजवाद के बारे में बताते हैं।

 

सभी प्रपत्रों की प्रस्तुति के उपरांत मुख्य वक्ता के रूप में प्रो॰ श्रीधर हेगड़े ने अपनी बात सभी के समक्ष रखते हुए कहा कि प्रेमचंद के दर्शन एवं प्रभाव से ही उनके समय को प्रेमचंद युग कहा गया है।

सत्र कि अध्यक्षता करने हेतु उपस्थित प्रो॰(डॉ॰) मनु जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि समाज में समानता का अभाव आज भी देखने को मिलता है। वे गाँव, शहर, सियासत के बीच लोगों पर हो रहे शोषण की कहानी को बताते हुए कहते हैं कि प्रेमचंद के समय और आज के समय में अधिक अंतर देखने को नहीं मिलता।

उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से इंसानी चोट को भी दर्शाया है:-

गिरते-गिरते मैंने चलना सीखा/ और चोट भी  लगी थी

वे चोटें सूख भी गयी थी/ आज भी मैं गिरता हूँ

बाहर से नहीं भीतर से गिरता हूँ/ और वह चोट सूखती भी नहीं

इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी घनश्याम कुमार द्वारा किया गया।

समापन : 

          समापन सत्र का संचालन शोधार्थी प्रगति द्वारा किया गया। इसकी अध्यक्षता प्रो॰ (डॉ) मनु जी ने अपनी कुछ कविताओं के साथ की। मुख्य अतिथि प्रो श्रीधर हेगड़े जी ने अपनी बात समाप्त करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि सभी को प्रेमचंद साहित्य का अनिवार्य रूप से अध्ययन करना चाहिए। इस सत्र के मुख्य वक्ता डॉ  श्रीकांत एम. एन. जी ने भी इस आयोजित संगोष्ठी के लिए सभी को धन्यवाद दिया। इसके बाद प्रतिवेदन प्रस्तुति शोधार्थी आदित्य ने किया। सभी कार्यक्रम के बाद प्रपत्र प्रस्तुतकर्ताओं को प्रमाणपत्र वितरण किया गया। स्नातकोत्तर की छात्रा प्रत्युषा प्रमोद द्वारा सभी को धन्यवाद ज्ञापन किया गया।

          अंत की ओर अग्रसर इस कार्यक्रम में वायनाड में हुई क्षति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। इसके बाद इसकी समाप्ति की घोषणा राष्ट्रीय गान के पश्चात् की गयी। कार्यक्रम पूर्ण रूप से सफ़ल हुआ। कार्यक्रम में लहभग 50 प्रतिभागियों ने सहभागिता की। 

रिपोर्ट लेखन- आदित्य, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

फोटोग्राफी- इलियास मोहम्मद, आदित्य, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय

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