कन्नूर के एस. एन. कॉलेज में राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभागीय शोधर्थियों की सहभागिता और प्रपत्र प्रस्तुतिकरण
द्वितीय सत्र
की अध्यक्षता करते हुए मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर डॉ मनु ने भाषा के
वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हुए बताया कि हिंदी में ग्रहण करने की
क्षमता है जो सभी भाषाओं को अपने में जोड़कर चलती है यही हिंदी भाषा की सबसे बड़ी
खूबसूरती हैं। इस अवसर पर उन्होंने अपनी स्व रचित कविता का पाठ भी किया। यथा-
कभी-कभी
जिंदगी में /किसी का आना,
आना सा लगता है/जाना सा न लगता है।
अभी तक मैं /तेरी राहों से गुजर रहा था।
अब मैं अपनी राहों को/ बदल देता हूं।
मेरे संग तेरा चलना/ मेरी पसंद है।
न कि तेरे संग मेरा चलना /फिर भी किसी न
किसी वजह से।
हम साथ साथ चलते हैं/मगर लोग पहचान नहीं कर
पाते हैं।
कौन किसके साथ चलते हैं/ यही मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिलासा है।
संगोष्ठी के मध्य भाग में शोधार्थियों
द्वारा अपने शोध पत्रों का वाचन ओनलाइन और प्रत्यक्ष रूप से किया गया जिसमें
शोधार्थी इलियास मोहम्मद ने “राजस्थानी भाषा और लोक संस्कृति में अंतर्संबंध।” विषय पर
अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए राजस्थानी भाषा और लोक संस्कृति की विविधता के
बारे में बताते हुए कहा कि राजस्थान में आपको संपूर्ण भारत के दर्शन हो जाते हैं।
शोधार्थी आविद खान ने “ हिंदी उपन्यासों में भारत विभाजन और मिली
जुली संस्कृति का पतन” तथा योयी जमोह ने “भाषा और संस्कृति के
अंतर्संबंध”, घनश्याम कुमार ने - “बिहार
राष्ट्र भाषा परिषद् और लोक संस्कृति का संरक्षण” विषय अपने अपने शोध
पत्रों का वाचन किया तथा शोधार्थी मनोज बिस्वास ने सहभागी के रूप में भाग लिया।
एस. एन. कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्षा डॉ
रतिका पंचारपोयिल कट्टाई ने पधारे हुए सभी विद्वानों और सहभागियों को धन्यवाद
ज्ञापित करते हुए कहा कि केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष
प्रोफेसर डॉ मनु और शोधार्थियों का बहुत बहुत आभार जिन्होंने इस संगोष्ठी में अंत
तक उपस्थित रहकर इसे सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ रम्या के.
बालन और श्रुति के. ने अपने शुद्ध उच्चारण और मधुर
आवाज से मंच संचालन करते हुए सभी श्रोताओं को आनंद विभोर किया।
संगोष्ठी का समापन सामुहिक राष्ट्रगान के साथ हुआ।
प्रस्तुतीकरण- इलियास मोहम्मद, शोधार्थी हिंदी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय
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