गुणवत्तापूर्ण लेखन के विभिन्न सोपान : हिन्दी परिषद परिचर्चा

31 जनवरी 2024, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा संचालित ‘हिंदी परिषद’ के अंतर्गत शोधार्थी एवं लघु शोध प्रबंध लेखन के इच्छुक द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों को ध्यान में रखते हुए ‘गुणवत्तापूर्ण लेखन के विभिन्न सोपान’ शीर्षक पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. मनु ने की। डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह इसके संयोजक की भूमिका में रहे। संचालन का कार्य शोधार्थी प्रगति ने किया। संकाय के अन्य सदस्य प्रो. तारु एस. पवार, डॉ. राम विनोद रे, डॉ.सीमा चंद्रन और डॉ सुप्रिया.पी ने उपस्थित होकर कार्यक्रम को सुचारू रूप से संपन्न किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. मनु सर ने समीक्षात्मक आलेख लेखन में अनुवाद की प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं पर चर्चा करते हुए अपनी मौलिक कविताओं का उदाहरण देते हुए विशेष रूप से अनुवाद में सामाजिक–सांस्कृतिक अनुवाद की समस्या को रेखांकित किया।  कार्यक्रम के अगली कड़ी में द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों एवं शोधार्थी ने अपने-अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि विषय–चयन, सहायक सामग्री संकलन आदि में प्राध्यापकों, पुस्तकालय और गूगल को प्राइमरी सोर्स के अंतर्गत बताया। लेखन के संदर्भ में द्वितीय वर्ष के विद्यार्थी बलदाऊ ने बताया कि ‘कुछ न लिखना अपने विचारों की हत्या करना है’।  शोधार्थी आदित्य ने मौलिक पंक्तियों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण  लेखन के बारे में अपने अनुभव साझा किया। शोधार्थी घनश्याम और कल्पना ने शोध प्रकाशन से सम्बन्धित प्रश्न रखें जिसका डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह एवं प्रो. तारु एस. पवार ने उत्तर देते हुए अपना मत स्पष्ट किया।

संकाय सदस्य डॉ. राम विनोद रे ने शोध के संबंध में हाइपोथेसिस शोध के दो प्रकार सैद्धांतिक शोध और परिप्रेक्ष्य शोध के बारे में बताया। हाइपोथेसिस के संदर्भ में बताया  कि आर्य बाहर से आए या नहीं?  इस प्रश्न के उत्तर के संदर्भ में व्यक्ति की जो धारणा बनेगी वही व्यक्ति की हाइपोथेसिस हो सकती है। संकाय के वरिष्ठ प्रोफेसर तारु एस पवार ने कार्यक्रम में समय प्रबंधन और आलेख लेखन के कुछ सैद्धांतिक पक्ष जैसे भूमिका, केंद्र बिंदु एवं निष्कर्ष के साथ-साथ प्रकाशन में व्याप्त भ्रष्टाचार के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया। कार्यक्रम की समाप्ति भाग में डॉ. सुप्रिया पी ने लघु शोध प्रबंध लेखन में विषय–चयन, अध्यायीकारण, उपशीर्षक, फुटनोट, सहायक सामाग्री और विशेष रूप से शोधार्थी–निर्देशक के मध्य समय की समस्या को लेकर अपना पक्ष रखा। कार्यक्रम का समापन मंच संचालिका शोधार्थी प्रगति ने धन्यवाद के साथ किया।

प्रस्तुति 

मनोज बिस्वास 

शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय 







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