कालजयी कृति 'मधुशाला' के महत्त्व और प्रासंगिकता पर चर्चा-परिचर्चा आयोजित
दिनांक 01 नवंबर 2023, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी
विभाग में हिंदी-परिषद् के तत्वाधान में हरिवंशराय
बच्चन जी की कालजयी कृति 'मधुशाला'
के महत्त्व और प्रासंगिकता पर चर्चा - परिचर्चा
आयोजित हुई। इस परिचर्चा में हिंदी विभाग के सभी विद्यार्थी, शोधार्थी और अध्यापकों की उपस्थिति रही । इसकी अध्यक्षता हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष
प्रो. डॉ. मनु ने की। चर्चा-परिचर्चा में बच्चन जी के काव्य संग्रह 'मधुशाला'
के शीर्षक व महत्त्व के व्यापक अर्थों पर दृष्टि डाली गयी। विभागाध्यक्ष
प्रो. डॉ. मनु ने मधुशाला में मंदिर-मस्जिद का विभेदीकरण कर एकता व प्रेम को स्पष्ट किया। हिंदी परिषद् के सह-संयोजक
डॉ. राम विनोद रे ने मधुशाला काव्य की पृष्ठभूमि को भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन
तथा तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के अर्थ में जोड़कर देखने की एक दृष्टि प्रस्तुत
की। जिसमें बंगला साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर, सुकुमार सेन का
उल्लेख करते हुए गांधी और हिंदी साहित्य में छायावाद, स्वच्छंदतावाद,
हालावाद के महत्त्व के समान्तर गर्म दल और नरम दल की वैचारिक पृष्ठभूमि
को रेखांकित किया। सहायक आचार्य डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने मधुशाला शब्द को ‘हजारी
प्रसाद द्विवेदी’ के शब्दों में
"जो विद्वान व्यक्ति होता है वह तर्क से अपने बचाव का रास्ता
तलाश लेता है।"
परिभाषित करते हुए कहा कि विद्वानों ने मधुशाला का अर्थ अलग-अलग रूपों में लिया है।
शोधार्थी आदित्य ने उचित आरोह-अवरोह, लय
ताल के साथ काव्य पाठ किया। शोधार्थी इलियास मोहम्मद ने काव्य में निहित आपसी
स्नेह, प्रेम और भाईचारे के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा-
“दोनों रहते एक न जब
तक मंदिर-मस्जिद में जाते,
मंदिर-मस्जिद बेर
कराते, मेल कराती मधुशाला।”
इसकी व्याख्या प्रस्तुत करते हुए मधुशाला में प्रयुक्त आपसी एकता, भाईचारा, मस्ती, प्रेम, हालावाद आदि पर संक्षिप्त चर्चा प्रस्तुत की। इस कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन परास्नातक छात्र सुरेंद्र ने किया । सम्पूर्ण कार्यक्रम को डॉ. सुप्रिया पी. के संयोजनानुसार संपन्न किया गया ।
रिपोर्ट लेखन : आविद खांन, शोधार्थी हिंदी विभाग केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय
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