भारतीयता की वैश्विक पहचान है हिन्दी प्रवासी साहित्य- डॉ. उमेश कुमार सिंह

  

25 सितंबर 2023, केरल केंद्रीय विद्यालय के हिंदी विभाग के प्रांगण में हिन्दी परिषद के अंतर्गत 'प्रवासी हिंदी साहित्य का वैश्विक सन्दर्भ' विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के उपाचार्य डॉ. उमेश कुमार सिंह ने प्रवास का अर्थ बताते हुए कहा कि स्थानीय प्रवास में दर्द नहीं होता। गिरमिटिया मजदूरों के रूप में प्रवासी बने भारतीय बीज के रूप में रामचरितमानस अपने साथ लेकर गए और वही उनकी स्मृतियों का आधार बना। अभिमन्यु अनंत के 'लाल पसीना' और 'गांधी जी बोले' उपन्यासों का जिक्र करते हुए बताया कि इन कृतियों में प्रवासियों का दर्द बारीकी से मुखरित हुआ है। उन्होंने अपने उद्घाटन वक्तव्य के दौरान बताया कि 1935 में निकलने वाली दुर्गापत्रिका की हस्तलिखित प्रति के आज 100 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. मनु ने अपनी कविता 'प्रवासी परिंदा' के माध्यम से प्रवासियों के दर्द को बयान करने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि 'प्रवास' ग्रीक शब्द से निकला है और 'प्रवास' का एक अर्थ गरीबी होता है। भारत से आठ लाख छात्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाते हैं जिनके बारे में हमारी सरकार को सोचना चाहिए। मलयालम विभाग के अध्यक्ष डॉ. चंद्रबोस ने अपने आशीर्वचन में मलयालम भाषा में लिखे जाने वाले प्रवासी साहित्य का उल्लेख करते हुए संगोष्ठी की सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त किए। केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजभाषा अधिकारी डॉ. अनीश कुमार टी. के. ने कहा कि आज केरल में प्रवासियों की संख्या बहुत अधिक है जो नौकरी, शिक्षा और बेहतर रोजगार के लिए प्रवास करते हैं, उनके मन में जन्मभूमि और तन में कर्मभूमि बसती है। उद्घाटन सत्र का स्वागत वक्तव्य हिंदी विभाग की सहायक आचार्य और संगोष्ठी संयोजिका डॉ. सुप्रिया पी. के द्वारा दिया गया। हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. राम विनोद रे ने उद्घाटन सत्र में धन्यवाद ज्ञापित किया।

प्रथम अकादमिक सत्र की अध्यक्षता केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर प्रो. तारु एस. ने करते हुए बताया कि प्रवासी साहित्य अपने आप में वैश्विक है। 1934 में गिरमिटिया मजदूरों के साथ ही इसका प्रारंभ मानना चाहिए। उन्होंने प्रवासी साहित्य को तीन भागों में विभक्त करते हुए कहा कि प्रथम श्रेणी में वे प्रवासी आते हैं जो एग्रीमेंट के तहत विदेश ले जाए गए, दूसरे तरह के प्रवासी पढ़ाई के लिए प्रवास करते हैं और तृतीय श्रेणी में आने वाले प्रवासी सुख, संपन्नता और वैभव के लिए विदेश गमन करते हैं। प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता हिन्दी विभाग, फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा कॉलेज, कर्नाटक के अध्यक्ष डॉ. श्रीधर हेगड़े ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मूल निवासी और प्रवासी में अंतर होता है। आज भी प्रवासी साहित्य के सिद्धांत को लेकर मत-मतांतर दिखाई देते हैं। उन्होंने कहा कि G-20 के समय में ऐसे विषय पर संगोष्ठी हिंदी विभाग की महत्वपूर्ण पहल है। अपने वक्तव्य के दौरान महात्मा गांधी, कार्ल मार्क्स, फ्रायड और डार्विन ने विश्व पर व्यापक प्रभाव डालने का उल्लेख करते हुए कहा कि इनका श्रेष्ठतम विचार प्रवास के दौरान निकलकर आता है। कासरगोड सरकारी कॉलेज की सहायक आचार्य डॉ. नवमी एम. ने 'प्रवासी : अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं' विषय पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। इसके साथ ही हिंदी विभाग की शोधार्थी प्रिया कुमारी ने 'प्रवासी हिंदी साहित्य में सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना' विषय पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। सत्र का संचालन हिंदी विभाग की शोधार्थी रूबी पटेल ने किया।

         द्वितीय अकादमिक सत्र की मुख्य वक्ता के रूप में कन्नूर विश्वविद्यालय के नीलेश्वरम परिसर की उपाचार्य एवं अध्यक्ष डॉ. प्रीति के. ने अपने वक्तव्य के दौरान हिंदी को विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में उल्लेखित किया। उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रवासी साहित्य भारतीयता से उपजा साहित्य है। प्रवासी साहित्य में भारतीयता के सांस्कृतिक मूल्य सर्वत्र परिलक्षित होते हैं। आज 137 देश में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है और हिंदी बोलने वालों की संख्या एक अरब तीस करोड़ के आस-पास है। प्रवासी रचनाकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से विदेश में भी भारतीयता को सुरक्षित रखा है। इस सत्र की अध्यक्षता हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. मनु के द्वारा की गई। हिंदी विभाग के शोधार्थी शर्ली थॉमस ने 'दिव्या माथुर के साहित्य में भारतीय नारी का मूल कर्म', रूबी पटेल ने 'तेजेंद्र शर्मा की कहानियों में प्रवासी जीवन की समस्याएं' और तरुण कुमार ने 'प्रवासी कहानियों में सेक्सुअलिटी' विषय पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। सत्र का संचालन हिंदी विभाग की शोधार्थी प्रिया कुमारी के द्वारा किया गया।

         तृतीय अकादमिक सत्र के मुख्य वक्ता हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. राम बिनोद रे ने तुलनात्मक दृष्टि से आजादी के पहले और बाद के प्रवासी जगत पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि प्रवासी साहित्य के आंतरिक विश्लेषण की जरूरत है। कुछ लोग मजबूरीवश प्रवास करते हैं तो कुछ भौतिक सुख-सुविधाओं, अर्थोपार्जन, शिक्षा और रोजगार हेतु विदेश गमन कर रहे हैं। ऐसे में उनके साथ परिवार भी जा रहा है जो अकेलेपन की समस्या से जूझता हुआ सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करता है। हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने लखनऊ में जन्मे सुरेशचंद्र शुक्ल के साहित्य के माध्यम से प्रवासियों के साथ होने वाली राजनीति पर अपने विचार व्यक्त किए। सुरेशचंद शुक्ल द्वारा लिखी कविता 'लखनऊ की चाशनी कहां है' के माध्यम से प्रवास करने वाले प्रवासियों के मन में उनकी जन्मस्थली से बिछुड़ने के दर्द का उल्लेख किया। सत्र की अध्यक्षता हिंदी विभाग के प्रो. तारु एस. पवार और संचालन शोधार्थी अमर सिंह ने किया। हिन्दी विभाग की शोधार्थी प्रगति ने प्रवासी जगत की हिन्दी कविताओं में समकालीन चुनौतियाँऔर रोहित कुमार ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानी पासपोर्ट का रंगपर अपने प्रपत्र प्रस्तुत किया।

           तृतीय समानांतर सत्र में मलयालम विभाग अध्यक्ष डॉ. चंद्रबोस आर ने मलयालम भाषा में लिखे जाने वाले प्रवासी साहित्य की व्यापकता पर चर्चा की। मलयालम विभाग की सहायक आचार्य डॉ. देवी के. ने वक्तव्य देते हुए केरल के मलयाली प्रवासियों की पीड़ा को मलयालम साहित्य में चित्रित किए जाने का उल्लेख किया। इस सत्र में मलयालम विभाग के शोधार्थी रंजित वी., आयिसत्त हसूरा बी.ए., अनश्वरा एस., फातिमत नौफीरा एम.ए., विष्णु पी.एस., शजिना वर्गीसरेशमा के.वी. ने प्रपत्र प्रस्तुत किया गया। सत्र का संचालन हिंदी विभाग की शोधार्थी शर्ली थॉमस द्वारा किया गया।

           संगोष्ठी के समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में भाषा एवं तुलनात्मक साहित्य विद्यापीठ के संकायाध्यक्ष प्रो. जोसेफ कोइपल्लि ने प्रवास को किसी भी संस्कृति की बहुत पुरानी परंपरा कहा। उन्होंने कहा कि केरल की जनसंख्या एक मिश्रित जनसंख्या है। डायसपोरा शब्द के मूल में जाकर उसकी निष्पत्ति पर उन्होंने प्रकाश डाला। समापन सत्र में स्वागत भाषण हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मनु के द्वारा और धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग की सहायक आचार्य और संगोष्ठी संयोजिका डॉ. सुप्रिया पी के द्वारा किया गया। संगोष्ठी का प्रतिवेदन हिंदी विभाग के एम ए के छात्र सुरेंद्र ने प्रस्तुत किया गया।

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