'आज़ादी के बाद का भारत और नागार्जुन' विषय पर परिचर्चा
शोध मंच की सचिव शोधार्थी प्रिया कुमारी ने कार्यक्रम का आगाज़ करते हुए शिक्षकों, शोधार्थियों, एम.ए के छात्र-छात्राओं का स्वागत किया। मुख्य वक्ता के रूप में शोधार्थी निशांत भूषण ने नागार्जुन की रचनाओं के माध्यम से तत्कालीन परिस्थितियों से अवगत कराया। अपने वक्तव्य के दौरान शोधार्थी निशांत ने नागार्जुन के जीवन के बारे मे बताते हुए उनकी कविता 'मातृभूमि, अंतिम प्रणाम', 'सिंदूर तिलकित भाल', 'आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी', 'बाकी बच गया अंडा', 'मंत्र' आदि कविताओं पर अपने विचार प्रकट किए।'सिंदूर तिलकित भाल' कविता के माध्यम से वक्ता ने बताया कि किस प्रकार अतीत का मोह व्यक्ति से जुड़ा रहता है- "याद आता मुझे अपना वह तरउनी ग्राम/ याद आती लीचियां, वे आम/ याद आते मुझे मिथिला के रुचिर भू-भाग।" शोधार्थी निशांत ने पी.पी.टी (पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन) के माध्यम से नागार्जुन द्वारा काव्य पाठ की एक झलक प्रस्तुत की। तत्पश्चात् हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉ.धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने नागार्जुन के संदर्भ में प्रकाश डालते हुए उनकी रचनाओं में मौजूद सामाजिक सक्रियता के संदर्भ में 'दुखरन मास्टर' कविता का उदाहरण दिया- "घुन खाए शहतीरों पर की बाराखड़ी विधाता बांचे/ फटी भीत है, छत चूती है, आले पर बिसतुइया नाचे/ बरसा कर बेबस बच्चों पर मिनट मिनट पर पांच तमाचे/ दुखरन मास्टर गढ़ते रहते किसी तरह आदम के सांचे।" इसी क्रम में एम.ए के छात्र रोहित ने नागार्जुन की कविता 'अकाल और उसके बाद' का वाचन किया।
विभाग के अध्यक्ष प्रो (डॉ.) मनु ने सफलतापूर्वक कार्यक्रम आयोजन हेतु सभी को शुभकामनाएं दी। सहायक प्रोफेसर डॉ.राम बिनोद रे ने धन्यवाद करते हुए इस कार्यक्रम का समापन किया। कार्यक्रम के दौरान हिन्दी विभागाध्यक्ष, विभागीय शिक्षकों के साथ एम. ए. और पीएच. डी. के 41 छात्र-छात्राओं ने सहभागिता की।
प्रस्तुति
प्रगति
शोधार्थी, हिन्दी विभाग
केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय
Comments
Post a Comment