हिन्दी साहित्य में स्त्री स्वर (राष्ट्रीय संगोष्ठी)

 

08-09 मार्च 2018, हिन्दी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय हिन्दी साहित्य में स्त्री स्वरथा।। संगोष्ठी के मुख्य आकर्षण नई दिल्ली से आयी प्रसिद्ध कहानीकार चित्रा मुद्गल और गीताश्री, गोवा से आयी हिन्दी की प्रसिद्ध कहानीकार जयश्री राय, केरल की आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती सी के जानू, केरल विश्वविद्यालय की प्रो. तंकमोणि अम्मा, कर्नाटक केन्द्रीय विश्वविद्यालय की प्रो. सुनीतामंझन बैल, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय की प्रो. शान्ति नायर रहीं। संगोष्ठी में उद्घाटन और समापन सत्र के अतिरिक्त चार अकादमिक सत्र हुए। उद्घाटन सत्र में स्वागत हिन्दी विभागाध्यक्षा प्रो. सुधा बालकृष्णन ने किया जबकि अध्यक्षता एवं उद्घाटन भाषण विश्वविद्यालय के कुलपति  प्रो. जी. गोप कुमार ने किया। उद्घाटन सत्र में बीज वक्तव्य नई दिल्ली से आयी वरिष्ठ  कहानीकार चित्रा मुद्गल ने दिया। उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. ए. राधाकृष्णन नायर, भाषा एवं तुलनात्मक साहित्य विद्यापीठ के संकायाध्यक्ष प्रो. एन. अजित कुमार, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के आंतरिक शिकायत समिति की अधिष्ठाता अधिकारी डॉ. स्वप्ना एस. नायर, नई दिल्ली से आई समकालीन लेखिका एवं पत्रकार गीताश्री, हिन्दी की प्रसिद्ध महिला कथाकार जयश्री राय ने आज की महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों के संदर्भ में अपने विचार प्रकट किए। संगोष्ठी में आये अतिथियों का स्वागत करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. सुधा बालकृष्णन ने तकनीकी युग में स्त्रियों की संकटपूर्ण सिथति पर चिन्ता जताई। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जी. गोप कुमार ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय में अध्ययनरत शिक्षार्थियों में 67 प्रतिशत संख्या लड़कियों की होने का उल्लेख किया और बताया कि शिक्षा के द्वारा ही स्त्रियाँ सामाजिक, मानसिक और आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बन सकती हैं। उन्होंने वैश्विक स्तर पर प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान समय तक के स्त्रियों के मुक्ति-संघर्ष पर प्रकाश डाला। सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती सी के जानू ने केरल की स्त्रियों के संदर्भ में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि स्त्री परिवार को आगे बढ़ाती है और यदि उसकी स्थिति परिवार में खराब होगी तो समाज की स्थिति भी बिगड़ती चली जायेगी। केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के आंतरिक शिकायत समिति की अधिष्ठाता अधिकारी डॉ. स्वप्ना एस. नायर ने किसी भी परिवर्तन की शुरूआत अपने घर से करने को कहा। स्त्रियाँ आज भी घरेलू कार्यों के लिए प्रशिक्षित की जाती हैं, न कि लड़कों की तरह विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में। सुप्रसिद्ध लेखिका और पत्रकार गीताश्री ने महिलाओं के लिए आरक्षण का मुद्दा उठाते हुए कहा कि राजनीति में आने के बाद महिलाओं की दशा और दिशा बदल सकती है। असली सशक्तिकरण राजनीति है। इसके बाद गोवा से आई हिन्दी कहानीकार जयश्री राय ने स्त्री लेखिकाओं के जीवन और लेखनी में एकरूपता लाने पर भारतीय समाज में उनकी स्थिति बेहतर होने की बात कही। मुख्य वक्तव्य वरिष्ठ महिला कथाकार चित्रा मुद्गल ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि स्त्रियाँ सहिष्णुता का पर्याय हैं और आज राजनीति में दलित स्त्री, सवर्ण स्त्री आदि के नाम पर जो विभाजन हो रहा है वह पितृसत्तात्मक मानसिकता की देन है। उन्होंने स्त्रियों की राजनीतिक भागीदारी पर जोर देते हुए कहा कि यह स्त्रियों की स्थिति में व्यापक परिवर्तन ला सकती है। सत्र का संचालन संगोष्ठी संयोजिका डॉ. सुप्रिया पी और धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग के उपाचार्य डॉ. तारु एस. पवार द्वारा किया है। इस अवसर पर प्रो. सुधा बालकृष्णन की पुस्तक चित्रा मुद्गल के कथा साहित्य में स्त्री विमर्श के विविध आयामऔर प्रो. तंकमोणि अम्मा द्वारा चित्रा मुद्गल की पुस्तक आवांके मलयालम अनुवाद का विमोचन माननीय कुलपति द्वारा किया गया।

संगोष्ठी के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए केरल विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. तंकमोणि अम्मा ने कहा कि वादों का युग बीत चुका है और आज विमर्शों का दौर चल रहा है और स्त्री विमर्श आज साहित्य और राजनीति के केन्द्र में है। इस सत्र में कर्नाटक विश्वविद्यालय की प्रो. सुनीतामंझन बैल, दिल्ली की गीताश्री, गोवा की जयश्री राय ने स्त्रियों के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन विभागीय शोध छात्रा दीक्षा सिंह और धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सहायक आचार्य डॉ. रामबिनोद रे द्वारा किया गया।

इसके पश्चात हिंदी विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें नाटक, एकलगायन, समूह गायन,  नृत्य आदि प्रमुख रहे। नाटक में सीमा दास, मनोज कुमार, शिव कुमार के अतिरिक्त परास्नातक की छात्राओं ने भी भूमिका निभाई। एम. ए. प्रथम और द्वितीय वर्ष की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत नृत्य और गायन ने श्रोताओं का मन मोह लिया।

संगोष्ठी के दूसरे दिन तृतीय सत्र स्त्री पंचायतके अंतर्गत चित्रा मुद्गल, गीताश्री, जयश्री राय, प्रो. तंकमोणि अम्मा और प्रो. सुधा बालकृष्णन ने श्रोताओं से सीधे वार्तालाप किया और महिलाओं की वर्तमान दिशा एवं दशा के बारे में गंभीर विचार मंथन हुआ। पूरा सत्र युवा और बुर्जुआ पीढ़ी के अंतद्र्वंद से जीवंत बना रहा। इस दौरान नारी की आज के समय में बदलते परिदृश्य पर सभी विदुषियों ने अपने विचारों से छात्रों को अवगत कराया। सत्र का संचालन संगोष्ठी संयोजिका डॉ. सुप्रिया पी और धन्यवाद ज्ञापन एम.. की शोध छात्रा सौपर्णिका ने किया।

हिन्दी साहित्य में स्त्री स्वरविषयक संगोष्ठी का चतुर्थ सत्र में मंच युवाओं से लबरेज रहा। इस सत्र की अध्यक्षता नई दिल्ली से आई समकालीन लेखिका एवं पत्रकार गीताश्री ने किया। श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय की प्रो. शांति नायर, सरकारी ब्रेनन कॉलेज, तल्श्शेरी की सहायक आचार्य डॉ. हेना और श्री केरल वर्मा कॉलेज, त्रिश्शूर की सहायक आचार्य डॉ. राजेश्वरी ने इस सत्र में अपने वक्तव्य दिए। हिन्दी विभाग की शोध छात्रा दिलना के (बदलती नारी का चित्रण मित्रो मरजानीके विशेष संदर्भ में), नवमी एम (मालती जोशी की चुनी हुई कहानियों में स्त्री विमर्श), सीमा दास (समकालीन भारतीय उपन्यासों में स्त्री चेतना का स्वर), हेमंत कुमार (स्त्री साहित्य का दस्तावेज : निर्मला पुतुल), मनोज कुमार (चित्रा मुद्गल के कथा साहित्य में स्त्री चेतना का स्वर), प्रेमचंद मौर्य (गोदान उपन्यास में स्त्री चेतना का स्वर) और नवनीत (अंगोर बनती कविता) अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए। सत्र का संचालन विभागीय शोध छात्र हेमंत कुमार और धन्यवाद ज्ञापन प्रभांशु शुक्ल ने किया।

संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. सुधा बालकृष्णन ने की तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कार्यकारिणी परिषद के सदस्य प्रो. के जयप्रसाद मौजूद थे। उक्त सत्र में मुख्य वक्तव्य वरिष्ठ महिला कथाकार चित्रा मुद्गल ने प्रस्तुत किया। विभाग के सहायक आचार्य डॉ. राम बिनोद रे ने संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी की संयाजिका डॉ. सुप्रिया पी ने किया। 


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