पाँच दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला ‘शोध और प्रकाशन की नैतिकता’ का सफलतापूर्वक आयोजित
उद्घाटन सत्र के पश्चात प्रथम
सत्र का संचालन शोधार्थी तरुण कुमार ने किया। इस सत्र में बीज वक्ता के रूप में
केरल विश्वविद्यालय,
हिन्दी विभाग के आचार्य प्रो. एस. आर जयश्री उपस्थित रहीं।
उनके वक्तव्य का विषय 'अनुसंधान अभिकल्ल्पना और
परिकल्पना'।(रिसर्च डिजाइन एंड
हाइपोथीसिस) रहा।
आपने शोधकार्य में अभिकल्पना और परिकल्पना के महत्व को रेखांकित
किया। सिद्धान्त और अनुसंधान की बीच की कड़ी ‘परिकल्पना’ है। अनुसंधान कार्य में
परिकल्पना के महत्व को स्पष्ट करते हुए इसकी मौलिकता एवं नैतिकता का अनुसंधान पर
प्रभाव के संदर्भ से भी हमें परिचित कराया। आपने बताया कि विश्लेषण जहाँ समाप्त
होता है वहाँ से मूल्यांकन शुरू होता है, और शोध अभिकल्पना के निर्माण में जिन
महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान रखना जरूरी है उसे भी अपने व्याख्यान में समेट कर
हमें कृतार्थ किया। आपने व्यावहारिक सत्र के दौरान सवालों से लबरेज प्रतिभागियों
के मन को शांत किया।
दूसरा सत्र प्रो. एम. एन. मोहम्मदुन्नी (केरल केन्द्रीय वि वि) के वक्तव्य द्वारा आरंभ हुआ। आपका परिचय ऑनलाइन जुड़े प्रतिभागी धर्मेन्द्र ने दिया। आपने नई शिक्षा नीति से सभी को विस्तारपूर्वक अवगत करवाया। आपने उपनिवेशवादी समय में, भारतीय शिक्षा प्रणाली से आरंभ हो कर राधाकृषण्ण कमीशन, द्वितीय शिक्षा आयोग, कोठारी आयोग, NEP 1986, 1992 से होते हुए NEP 2020 को जोड़ा। आपने समग्र शिक्षा (Holistic Learning), प्रभावी शिक्षा (Effective Learning), ज्ञान का लचीलापन (Flexibility of Knowledge), ज्ञान के कार्यात्मक समझ (Functional Understanding of Knowledge), विकास (Development) तथा बहुविषयकता (multidisciplinary) के बारे में चर्चा की। साथ ही आपने बताया कि NEP 2020 focuses on thinking and produced to new ideas की बात करता है। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी प्रगति ने किया।
कार्यशाला का दूसरा दिन :
25 फरवरी 2025
इस दिन संचालनकर्ता के रूप में शोधार्थी कल्पना ने अपना कार्यभार संभाला। विषय विशेषज्ञ के रूप में केरल विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य प्रो. जयचंद्रन आर. उपस्थित रहे। विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.)मनु व विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. (डॉ.) तारु एस. पवार ने प्रो. जयचंद्रन आर. को स्मृति चिन्ह देकर कार्यशाला में स्वागत किया । प्रो. जयचंद्रन आर. ने ‘MLA पद्धति, साहित्यिक चोरी व शोध प्रबंध प्रस्ताव लेखन’ विषय पर अपना व्याखान दिया । आपने व्याखान की शुरुआत विषय के ऐतिहासिक पक्ष को समझाते हुए की । आपने बताया कि एमएलए पद्धति के जन्मदाता नॉम चोमस्की है। आपने शोध प्रबंध प्रस्ताव लेखन के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। इसके साथ ही पारिस्थितिकी विमर्श एवं साहित्यिक चोरी के विषय में चर्चा की। आपने शोध लेखन में संदर्भ को MLA पद्धति के अनुरूप रखने पर बल दिया। कार्यशाला के आखिरी सत्र में एमएलए पद्धति का प्रयोग कैसे किया जाएगा इसके बारे में प्रायोगिक रूप से बताया । कार्यशाला में विभाग के शोधार्थी व स्नातकोत्तर के छात्र ओर आभासी पटल पर अन्य विश्वविद्यालयों से शिक्षकगण व शोधार्थी उपस्थित रहे । कार्यशाला के आखिर में धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी घनश्याम कुमार ने किया।
कार्यशाला का तीसरा दिन :
27 फरवरी 2025
शोधार्थी आविद ख़ान ने इन
दिन संचालनकर्ता के रूप में अपनी भूमिका अदा की। हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष
प्रो. डॉ मनु ने स्मृति चिन्ह देकर डॉ सी
जयशंकर बाबू (पॉन्डिचेरी विश्वविद्यालय)
को सम्मानित किया। हिन्दी विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. डॉ तारु एस पवार ने प्रो. डॉ नागरत्ना एन. राव (मंगलुरु विश्वविद्यालय) को समृति चिन्ह देकर
सम्मानित किया। इस सत्र में प्रथम वक्तव्य डॉ सी जयशंकर बाबू का रहा, इनका परिचय ऑनलाइन प्रतिभागी प्रियंका
जायसवाल ने दिया। वक्तव्य की शुरुआत डॉ सी जयशंकर बाबू जी ने कार्यशाला से जुड़े
सभी शोधार्थीयों एवं विधयार्थियों का संक्षिप्त परिचय लेने के साथ किया । इनका
वक्तव्य “पाठक, लेखक और प्रकाशक के उत्तरदायित्व” विषय पर रहा। आपने बताया कि
नैतिकता को पाठ्यक्रम में कब जोड़ा गया, और इसकी आवश्यकता कब पड़ी, तथा विषय चयन से
पहले किन किन चरणों का पालन करना होता है। (लिटरेचर रिव्यू)
Nep 2020 में
Indian knowledge system की बात की गई। पाठक को उपभोक्ता की
दृष्टि से देखते हुए आपने माना कि केवल सहायक सामग्री पर निर्भर रहना उपभोक्ता का
व्यक्तित्व है।
पारदर्शी मछली का चित्र दिखाकर शोध में पारदर्शिता को स्पष्ट किया। साथ ही शोध संदर्भ को स्पष्ट किया। ©, 🄯 common comment के बारे में जानकारी दी । आपने पाठक, लेखक और प्रकाशक की ज़िम्मेदारियाँ को नैतिकता के चश्मे से देखने पर बल दिया। इस दिन का दूसरा सत्र प्रो. डॉ नागरत्ना एन. राव द्वारा शुरू किया गया। शोधार्थी रत्ना (वर्धा विश्वविद्यालय) से ऑनलाइन जुड़कर इनका संक्षिप्त परिचय दिया। इन्होंने कॉपीराइट का अर्थ समझाते हुए कॉपीराइट अधिनियम 1957 के तहत प्रकाशन हितों के टकराव को समझाया। आपने बताया कि शोध आलेख, विज्ञापन, गाने, सॉफ्टवेयर्स आदि पर भी कॉपीराइट लागू होता है। कॉपीराइट की अवधि लेखक के जीवन काल के बाद 60 वर्ष पश्चात तक मान्य होती है। आपने अधिनियम 37, 39. 57. 29 के माध्यम से लेखकों और प्रकाशकों के नैतिक अधिकारों की बात की। भोजन के पश्चात चले व्यावहारिक सत्र में प्रथम व्यावहारिक सत्र डॉ सी जयशंकर बाबू का एवं द्वितीय व्यावहारिक सत्र प्रो. डॉ नागरत्ना एन. राव का रहा जिसमें शोधार्थीयों, विद्यार्थियों के सवालों का जवाब दिया गया, तथा उनसे चर्चा-परिचर्चा की गई। इन सत्रों के पश्चात धन्यवाद ज्ञापन सविता (विश्वविद्यालय कॉलेज मंगलुरु) ने किया।
कार्यशाला का चतुर्थ दिवस
: 28 फरवरी 2025
इस दिन का संचालन एम ए के छात्र लाल बाबू ने किया। इस दिन मुख्य
वक्ता के रूप में केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग के सहायक आचार्य डॉ
सुनील तिवारी का व्याख्यान डाटा विश्लेषण
पर रहा। जिसमें आपने आंकड़ों के विश्लेषण से लेकर उनके सफल प्रबंधन के रूप में
बरतने वाली सावधानियों पर भी विधिवत और विस्तारपूर्वक चर्चा की।
द्वितीय सत्र की शुरुआत डॉ रेखा कुर्रे (सहायक आचार्य, महात्मा गांधी
गवर्मेंट कॉलेज, माहे, पांडिचेरी) के
वक्तव्य से हुई। आपका विषय साहित्यिक चोरी, यू जी सी
नियमावली और ऑनलाइन सॉफ्टवेयर था, जिसमें साहित्यिक चोरी के
विभिन्न प्रकार, उससे संबंधित यू जी सी की नियमावली और
ऑनलाइन सॉफ्टवेयर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। जिनके सहयोग से शोध को और अधिक
मौलिक और उच्च स्तरीय बनाया जा सकता है।
तृतीय सत्र की मुख्य वक्ता रहीं वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, तमिलनाडु के हिंदी भाषा विज्ञान विभाग में सहायक आचार्य पद पर कार्यरत डॉ के जयलक्ष्मी । जिन्होंने शोध लेखन और साहित्यिक चोरी जैसे महत्वपूर्ण विषय के अंतर्गत शोध और अनुसंधान शब्द के प्रयोग को लेकर भी जानकारी साझा की। आपने साहित्यिक चोरी के विभिन्न प्रकार और शोध को ज्यादा गुणात्मक और पारदर्शी बनाने हेतु महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी प्रकाश डाला। सत्र का समापन एम ए द्वितीय सेमेस्टर की छात्रा प्रत्यूषा प्रमोद के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
कार्यशाला का पंचम दिवस :
01 मार्च 2025
शोधार्थी प्रिया कुमारी
ने इन दिन संचलंकर्ता के रूप में अपनी भूमिका अदा की। हिन्दी विभाग के
विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ मनु ने स्मृति
चिन्ह देकर प्रो. सुमा टी. रोडनवर (मंगलुरु
विश्वविद्यालय) को सम्मानित किया। हिन्दी विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. डॉ तारु एस
पवार ने डॉ विपिन तिवारी (गोवा विश्वविद्यालय) को समृति चिन्ह देकर
सम्मानित किया। इस सत्र का प्रथम वक्तव्य प्रो. सुमा टी. रोडनवर द्वारा शुरू किया गया। आपने बताया कि अनुसंधान का
अंतिम चरण रिपोर्ट है, इसमें तथ्य सीधा, ल, और संक्षिप्त होना चाहिए, तथा रिपोर्ट
का उद्देश्य सदैव केंद्रित होना चाहिए।
इस सत्र के बाद डॉ विपिन तिवारी का सत्र आरंभ हुआ, जिनका परिचय ऑनलाइन प्रतिभागी
अनु सुमन ने दिया । इसके बाद आपने अपने विषय ‘लेखक और प्रकाशक’ पर व्याख्यान दिया।
आपने बताया कि ज्ञान में मिलवाट नहीं होनी चाहिए। आपने अवधि कहावत “गुरु करो जान
का, पानी पियो छान का” से अवगत करवाया। आपने कई उदाहरण सहित बताया कि कई प्रकाशक
स्वयं के लाभ हेतु किताबों से छेड़छाड़ करते हैं और नैतिकता का पालन नहीं करते हैं,
जिस कारणवश पूर्ण जानकारी पाठक तक नहीं पहुँच पाती। इन्हीं कारणों से हिन्दी की क्षति
हो रही है। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी प्रदुन कुमार ने किया।
इसके पश्चात समापन सत्र का आरंभ कुलगीत से हुआ।
जिसका संचालन वरिष्ठ शोधार्थी धन राज ने किया। इस सत्र में सभी का स्वागत डॉ
रामबिनोद रे ने किया जो इसी विश्वविद्यालय
के सहायक आचार्य एवं कार्यशाला के संयोजक भी हैं। आभास पटल के माध्यम से जुड़े
प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला को लेकर अपनी प्रतिपुष्टि दी।
इस सत्र का उद्घाटन भाषण IQAC के निदेशक प्रो. ए.
मणिकवेलु ने दिया। अध्यक्षीय भाषण : प्रो.
डॉ मनु (अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय) ने
दिया। आशीर्वचन प्रो. डॉ तारु एस. पवार, (हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय) और डॉ.
अनीश कुमार टी. के. राजभाषा अधिकारी, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने दिया। समापन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. सुमा
टी रोडनवर, आचार्य, मंगलुरु विश्वविद्यालय रही । समापन भाषण
गोवा विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डॉ.
बिपिन तिवारी ने दिया।प्रतिवेदन शोधार्थी आदित्य (केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय)
ने प्रस्त्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ धर्मेन्द्र प्रताप सिंह (हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सहायक आचार्य
एवं कार्यशाला के संयोजक) ने दिया। सभी कार्य सुचारु रूप से चल सके इसके लिए डॉ
सीमा चंद्रन (हिन्दी विभाग,
केरल केन्द्रीय
विश्वविद्यालय, सहायक आचार्य एवं कार्यशाला के संयोजक) का भी अतिमहत्वपूर्ण योगदान
रहा। इसके साथ ही पाँच दिनों तक कार्यशाला के सुचारु संचालन में पीएच डी के सभी शोधर्थियों
के साथ स्नातकोत्तर के विद्यार्थी नन्दिता के वी, मंजिमा पी, मौहिबा अब्दुल लतीफ़, ऋतुवर्णा, नंदकिशोर बाग, श्रीनित्या, प्रत्युषा
प्रमोद, दृश्य एस, आयश्त्तु सदीदा, विनीता एम, अश्वती पी वी, कीर्तिराज, श्रीलक्ष्मी के एम, लालबाबू, अभिषेक, अभिनंद सुरेश और सुदिना का विशेष सहयोग रहा। कार्यशाला में कुल 51 प्रतिभागियों
ने सहभागिता की।
रिपोर्ट सम्पादन :
आदित्य, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
रिपोर्ट लेखन :
Ø घनश्याम कुमार, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
तरुण कुमार, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
Ø प्रार्थना गोगोई, नगाँव गर्ल्स
कॉलेज, नगाँव, असम
Ø प्रत्यूषा प्रमोद, एम ए द्वितीय
सेमेस्टर, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय
विश्वविद्यालय
Ø
मनोज कुमार, विश्वविद्यालय
कॉलेज, मंगलुरु
Ø
धनराज, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
Ø
प्रदुन कुमार, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
Ø
अभिषेक, एम ए चतुर्थ सेमेस्टर, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
मान सिंह, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
vविशेष सहयोग :
नन्दिता के वी, मंजिमा पी, मौहिबा अब्दुल लतीफ़, ऋतुवर्णा, नंदकिशोर बाग, श्रीनित्या, प्रत्युषा प्रमोद, दृश्य एस, आयश्त्तु सदीदा, विनीता एम, अश्वती पी वी, कीर्तिराज, श्रीलक्ष्मी के एम, लालबाबू, अभिषेक, अभिनंद सुरेश और सुदिना एम।
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