शिक्षक दिवस के अवसर पर ‘जुगनू’ कार्यक्रम आयोजित
शोधार्थी घनश्याम कुमार ने मंच संचालन की जिम्मेदारी निभाते हुए परंपरा के अनुसार सर्वप्रथम विभागाध्यक्ष प्रो.(डॉ) मनु सर को मंच पर आमंत्रित करते हुए उनके अनुभवों को सभी के समक्ष रखने का निवेदन किया। प्रो.(डॉ) मनु सर ने अपने संघर्षों को बताते हुए शिक्षा के क्षेत्र में लगभग 36 वर्षों के जीवन काल के अनुभव को साझा किया। वरिष्ठ आचार्य प्रो.(डॉ) तारु.एस पवार सर ने अल्प समय में कार्यक्रम आयोजित करने के संदर्भ में सभी छात्राओं एवं शोधार्थिओं का उत्साह वर्धन किया। उनका मानना हैं कि जीवन में सफलता का एक ही मूल मंत्र है समय पर कार्य करना इसके साथ अपने विश्वविद्यालयी जीवन को याद करते हुए लाइब्रेरी के महत्व को बताया।
डॉ. सुप्रिया पी मैम ने शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने शोध निदेशक प्रो. आर.सुरेंद्रन को नमन करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में लगभग 14 वर्षों के सफर को बताया और माँ को सबसे बड़ा गुरु माना। साथ में यह भी बताया है कि उनके पुराने छात्र-छात्राएं आज भी उन्हें याद करते हैं । बच्चों द्वारा बनाए गए उपहार में जो तस्वीर चित्रित थी उसके माध्यम से डॉ. सीमा चंद्रन मैम ने यह बताया कि उस उपहार में बने चित्र ने सही मायने में शिक्षक और विद्यार्थी के महत्व को दर्शाया है।
डॉ.राम बिनोद रे अपने शोध निदेशक प्रो.मोहन को याद करते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि आज वे इस पद पर है तो भविष्य में हम भी शिक्षक के पद पर होंगे और हो सकता है उनके ही बच्चे को पढ़ाएंगे। इसके साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के अनुभवों को भी साझा किया। अंत में डॉक्टर धर्मेंद्र प्रताप सिंह सर ने एक यथार्थ कहानी के माध्यम से शिक्षक के धैर्य गुण को और बच्चों के आलसीपन और छोटी- मोटी शरारतों के अनुभव को सबके सामने रखा।
कार्यक्रम के मध्य भाग में शोधार्थी आविद ने स्वरचित चार पंक्तियों को पेश किया। अगली कड़ी में विभाग के सभी सदस्यों के लिए तीन खेलों का आयोजन किया गया। सबसे पहले डांसिंग चेयर में डॉ.सुप्रिया पी मैम विजयी रही। आंख में पट्टी बांधकर जोकर के माथे में बिंदी लगाने में डॉ.राम बिनोद रे सर बाजी मारी और लेमन स्पून खेल में प्रो.(डॉ) मनु सर आगे रहे।
कार्यक्रम के अंतिम भाग में प्रथम वर्ष एवं द्वितीय वर्ष के छात्राओं ने मिलकर एक ग्रुप डांस प्रस्तुत किया और अंत में शोधार्थी प्रियंका ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।
प्रस्तुति- मनोज बिस्वास, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
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