भाषा संस्कृति की पहचान जिसे अगली पीढ़ी को सौंपना हमारी जिम्मेदारी- प्रो. के. सी. बैजु

 

दिनांक 31 अक्टूबर 2023, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 'संवाद पथ' कार्यक्रम 'प्रेम और हिंदी' विषय पर आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम का आरंभ विश्वविद्यालय कुलगीत से हुआ। विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति कार्यक्रम के उद्घाटक प्रो. के. सी. बैजु ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि अपनी कमियों को पहचान कर ही हम आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित कर सकते हैं। आज के समय में बाजार के लिए भाषा जरूरी है और हिंदी उस जरूरत की पूर्ति का सबसे बड़ा माध्यम है। उन्होंने त्रिभाषा सूत्र के क्रियान्वयन पर बल देते हुए कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी को बढ़ाने के हर संभव प्रयास विश्वविद्यालय की ओर से किए जाएंगे। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने गुजरात में बिताए गए समय के अपने अनुभव साझा किए। कार्यक्रम का स्वागत संबोधन हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो० (डॉ.) तारु एस. पवार ने करते हुए विश्वविद्यालय के स्वर्गीय कुलपति प्रो. एच. वेंकेश्ववरलू के सपने को साकार होता हुआ बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मनु ने कहा कि दुनिया में केवल एक भाषा है और वह है प्यार की भाषा। प्यार की भाषा सदैव जोड़ने का काम करती है और इसलिए दिल से निकालने वाले शब्दों को चुनते हुए कठिन शब्दों से बचना चाहिए। हिंदी भारत में दिल की भाषा की पूर्ति करती है। 

कार्यक्रम में आशीर्वचन प्रदान करते हुए मैनजमेंट विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद आर. गजाकोश ने कहा कि लगाव (प्रेम) से सब कुछ जीता जा सकता है। हिंदी में अपनी कविता प्रस्तुत कर हिंदी के प्रति अपने प्रेम को दर्शाया। फिल्में हिंदी सीखने का सबसे बड़ा माध्यम है। आज वैश्वीकरण के युग में भाषा ही आपको बचा सकती है और हिंदी के माध्यम से भारत के किसी भाग में आसानी से रहा जा सकता है।  

पर्यटन विभाग के अध्यक्ष डॉ. बिनोय टी. ए. ने हिंदी की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भारत में घूमने पर हिंदी का महत्व पता चल जाएगा। हिंदी संस्कृति की पहचान है। इसके द्वारा अपने देश की संस्कृति, परंपरा और ज्ञान भण्डार को समझा जा सकता है। देश में भावात्मक एकता स्थापित करने के लिए हिंदी सबसे जरूरी माध्यम है। भारत में पर्यटन हेतु हिंदी आवश्यक हो जाती है।

योग विभाग का प्रतिनिधित्व कर रही डॉ. अंजना ने कहा कि हिंदी भारत की आत्मा है जो देश को चेतना और स्फूर्ति प्रदान करती है। यह आज वैश्विक भाषा बन चुकी है जिसमें पूरे भारत की आवाज सुनाई देती है। केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजभाषा अधिकारी डॉ. अनीश कुमार टी. के. ने कबीर के एक दोहे "पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय/ ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।" के साथ हिंदी के प्रति अपने प्रेम को जाहिर किया। योग, प्रबंधन, पर्यटन और हिंदी विभाग के अभिषेक मुखर्जी, नेहा, जैसमिन, सोहन कुमार दास, हर्षित, बलदाऊ यादव आदि विद्याथियों ने हिंदी के प्रति अपने अनुभव एवं प्रेम को जाहिर किया। अनेक छात्र–छात्राओं ने स्वरचित कविता का पाठ किया। हिंदी विभाग के डॉ. राम बिनोद रे, डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह, डॉ. सुप्रिया पी., एम. ए. और पीएच. डी. के छात्रों ने भी अपनी भागीदारी दी। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग की शोधार्थी प्रिया कुमारी द्वारा किया गया। विभाग की सहायक आचार्य और संवाद पथ की संयोजक डॉ. सीमाचंद्रन ने धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।


प्रस्तुति

आदित्य 

शोधार्थी, हिंदी विभाग

केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय



 




Comments

  1. हिंदी का संबंध हमारे ह्रदय से है।

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