
28 फरवरी 2023, हिन्दी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग द्वारा 'भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी के योगदान' विषय पर चल रही संगोष्ठी के दूसरे दिन के प्रथम अकादमिक सत्र ‘स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी कविता का योगदान’ हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री पूर्णप्रज्ञा इवनिंग कॉलेज, उडुपी की प्रधानाचार्य डॉ सुकन्या मैरी जोसेफ ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर मंजूनाथ ने हिंदी साहित्य के उन स्थलों को रेखांकित किया जहां से देश प्रेम की महक आती है। इस संदर्भ में उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, भारतेंदु हरिश्चंद्र, माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा नवीन, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि साहित्यकारों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि निराला और पंत ने लोगों को जागरूक किया। भारतेंदु हरिश्चंद्र निज भाषा के प्रयोग पर बल देते हुए कहते हैं कि अपनी भाषा अपनत्व देती है। अंग्रेजों ने रेल संपत्ति लूटने के लिए बनाई थी जिससे कच्चा माल यहां से अपने देश ले जा रहे थे। गुलामी का हर तरह से विरोध होना चाहिए और यही विरोध हिंदी भाषा के उपरोक्त कवियों ने किया। मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि- जिसको न निज गौरव निज देश पर अभिमान है वह नर नहीं पशु नीरा और मृतक समान है। सत्र की अन्य वक्ता मंगलूर से आई सुमा रोडनवर ने कहा कि गुलामी को खत्म करने के लिए एक जुट होना जरूरी है और हिंदी उसी जरूरत की पूर्ति करती है। उन्होंने अवध के राणा बेनी माधव, बहादुर शाह जफर, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि का उल्लेख करते हुए उनके बलिदान को याद किया। किताबें जब्त होने की वजह से अनेक रचनाकर नाम बदलकर लेखन कार्य में जुड़े। अंग्रेजों के डर से अज्ञात नाम से बहुत सारा साहित्य रचा गया जिन पर अभी काम होना बाकी है। भारतेंदु मंडल के रचनाकार देश को जागरूक करने का काम कर रहे थे। कर्नाटक में कन्नड़ भाषा में बहुत सारा साहित्य लिखा गया लेकिन उसका प्रचार साथ नहीं हो पाया। आपस में बातचीत करने के लिए स्व भाषा जरूरी है। हिंदी राष्ट्रीय आंदोलन में अविस्मरणीय योगदान देती है। उन्होंने गया प्रसाद शुक्ल स्नेही, शाहिद लुधियानवी, शेख मोहम्मद, इकबाल, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि आजादी का श्रेय वीरों के साथ-साथ हिंदी भाषा को भी जाता है। पांडिचेरी विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अथिति प्रवक्ता डॉ राम यश पाल ने स्वाधीनता आंदोलन और भारतेंदु हरिश्चंद्र के संदर्भ में अपने विचार रखते हुए महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर, इकबाल का उल्लेख किया। 1857 आजादी का वह बीज है जो आगे चलकर एक बड़े आंदोलन के रूप में फलित होता है और यह आजादी उसी आंदोलन का प्रतिफलित रूप है। राम यश पाल ने कहा कि सभी भाषाओं में साहित्य रचा गया। उन्होंने अजीमुल्ला खान का विशेष रूप से उल्लेख किया। जनमानस से बात करने के लिए भारतेन्दु ने लावणी छंद का प्रयोग किया। उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर, मैथिलीशरण गुप्त, गिरिजाकुमार माथुर का उल्लेख करते हुए उनके साहित्य में स्वाधीनता आंदोलन के महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री पूर्णप्रज्ञा इवनिंग कॉलेज, उडुपी की प्रधानाचार्य सुकन्या मैरी जोसेफ ने की। सत्र का संचालन प्रथम वर्ष की छात्रा षिन्षी प्रिया और धन्यवाद ज्ञापन में तृतीय वर्ष की छात्रा जोसी जॉन ने किया।
दूसरे दिन के द्वितीय अकादमी सत्र ‘स्वतंत्रता संग्राम में
हिंदी भाषा का योगदान’ की अध्यक्षता डॉ सुमन रोडनवर ने
की। इस सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में श्रीधर हेगड़े ने अपने विचार रखे हुए कहा
कि हिंदी के बिना हम आजादी की कल्पना नहीं कर सकते। कर्नाटक के कुर्ग जिला का
उल्लेख करते हुए उन्होंने वहां पर हिंदी सीखने-सिखाने की चुनौतियां का जिक्र किया।
दक्षिण में हिंदी का प्रचार होने से हम एक सूत्र में बंधे और इसका श्रेय महात्मा
गांधी की कुर्ग यात्रा को जाता है। जहां पहुंचकर उन्होंने हिंदी का प्रचार प्रसार
किया। जब महात्मा गांधी कर्नाटक आए तब वहां के लोगों में भाषा सीखने की ललक बढ़ी।
कुडगू जिले में काम कर रहे अनेक लोगों ने महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर हिंदी
भाषा सीखी। कर्नाटक के लोगों ने अपने प्रदेश को याद रखते हुए हिंदी भाषा सीखी और
आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी का साथ दिया। मैसूर हिंदी सेवा समिति और
स्व-संस्थाओं के योगदान को रेखांकित किया। इतिहास को न याद रखा जाए तो किसी राज्य
का वजूद खत्म हो जाता है। भावात्मक दृष्टि से हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। भाषाई
राजनीति पर बात रखते हुए उन्होंने कहा। कन्नड़ उपन्यास ‘चिर स्मरणम’ ‘कल्याण स्वामी’ आदि का उल्लेख किया। आजादी के दौरान कर्नाटक के लोग गुप्त रूप से हिंदी
सीखते थे। अभी भी कर्नाटक में ऐसे क्षेत्र हैं इस विषय को लेकर शोध की जरूरत है।
छात्र संस्कृत के वाहक होते हैं और यह महत्वपूर्ण कार्यों को देश के सम्मुख ले आ
सकते हैं। सत्र की अध्यक्षता कर रही डॉ सुमा
रोडनवर ने कहा कि कन्नड़ साहित्य का अनुवाद के माध्यम से प्रचार प्रसार करना बहुत
जरूरी है। बसवेश्वर-कबीर का तुलनात्मक विवरण देते हुए कहा कि अनुभव मंडप ने सभी को
एक सूत्र में पिरोने का काम किया। मंगलोर में हिंदी प्रचार सभा की सदा शिव लाल ने
नीव रखी जिसके माध्यम से हिंदी आगे बढ़ी। इस सत्र का संचालन संगीता एम और धन्यवाद
ज्ञापन सुरेन्द्र कुमार ने किया।
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हिन्दी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग |
समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में भाषा
एवं तुलनात्मक साहित्य विद्यापीठ के संकाय अध्यक्ष प्रो. राजीव वी ने कहा कि
पुस्तकों से ज्यादा ज्ञान बाहर पड़ा है और इसके लिए हमें ऐसी संगोष्ठियों के
माध्यम से मेल मिलाप जरूरी है। इसके मध्ययम से शोध के लिए नई सामग्री प्राप्त होती
है। फील्ड मार्शल करिअप्पा कॉलेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष श्रीधर हेगड़े ने कहा
कि हमारा समूह छात्रों के लिए है और 100 साल के इतिहास को जानकर आप पुनः इस पर काम कर
सकते हैं। आप में से ही समाजसेवी, संगीतकार, अध्यापक, छात्र आगे चलकर देश के लिए अपना योगदान देंगे। प्रो. तारु एस. पवार ने
समापन सत्रह में अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। राजभाषा अधिकारी डॉ. टी के अनीश कुमार ने
संगोष्ठी को छात्रों और शिक्षकों के लिए लाभप्रद बताया। धन्यवाद ज्ञापन के दौरान
डॉ रामबिनोद रे ने कहा कि गांधी व्यक्ति नहीं एक विचार थे और उन्होंने पूरे भारत
को एक सूत्र में बांधने का काम किया। श्री पूर्ण प्रज्ञा इवनिंग कॉलेज, उडुपी की प्रधानाचार्य डॉ सुकन्या मैरी जोसेफ ने केरल केंद्रीय
विश्वविद्यालय को प्रासंगिक संगोष्ठी आयोजित करने के लिए बधाई थी। यूनिवर्सिटी फर्स्ट ग्रेड कॉलेज से डॉ रेखा के एस और केरल केन्द्रीय
विश्वविद्यालय की हिन्दी अनुवादक अमिता ने भी संगोष्ठी में अपनी सहभागिता दर्ज की।
संगोष्ठी में लगभग 60 छात्रों ने अपनी प्रतिभा गीता दी। हिंदी विभाग की सहायक
आचार्य डॉ सीमा चंद्रन ने संगोष्ठी का सार प्रतिवेदन के रूप में प्रस्तुत किया। डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने समापन सत्र में स्वागत किया और सत्र का
संचालन एम ए तृतीय सेमेस्टर के छात्र रेवती के ने किया। इस पोस्ट के समस्त चित्र एम. ए. प्रथम सेमेस्टर के छात्र सायन द्वारा लिए गए हैं।
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द्वितीय अकादमिक सत्र का संचालन करती एम ए प्रथम सेमेस्टर की छात्रा षिन्षी प्रिया पी |
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डॉ. सुमा रोडनवर, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, यूनिवर्सिटी कॉलेज, मंगलोर |
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पाण्डिचेरी विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग के अतिथि प्राध्यापक डॉ. राम यश पाल |
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डॉ. सुकन्या मैरी जोसफ, प्रधानाचार्य, श्री पूर्णप्रज्ञा इवनिंग कॉलेज, उडुपी
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जोसी जॉण, एम. ए. तृतीय सेमेस्टर, हिंदी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय
 | संगीता एम., एम. ए. तृतीय सेमेस्टर, हिंदी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय
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डॉ. श्रीधर हेगड़े, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, फील्ड मार्शल करिअप्पा कॉलेज, कर्नाटक
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सुरेन्द्र कुमार, एम. ए. प्रथम सेमेस्टर, हिंदी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय
 | समापन सत्र का संचालन करती एम. ए. तृतीय सेमेस्टर की छात्रा रेवती के
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विशिष्ट अतिथि के रूप में वक्तव्य देते राजीव वी., संकायाध्यक्ष, भाषा एवं तुलनात्मक साहित्य विद्यापीठ, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
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प्रो. तारु एस. पवार , अध्यक्ष (कार्यवाहक ), हिंदी विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय |
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डॉ. श्रीधर हेगड़े, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, फील्ड मार्शल करिअप्पा कॉलेज, कर्नाटक |
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समापन सत्र में संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत करती विभाग की सहायक आचार्य डॉ. सीमा चंद्रन
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डॉ. अनीश कुमार टी.के., राजभाषा अधिकारी, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय |
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समापन सत्र में अथितियों का स्वागत करते हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह |
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समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञपित करते हिन्दी विभाग, केरल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. राम बिनोद रे
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